Sunday, December 25, 2011

गति ही मेरी पहचान है



जिंदगी   गतिमान   है..
गति  ही  मेरी  पहचान है.
हों मार्ग में बाधाएँ जितनी 
आये अब अवरोध कितनी?
क्या राह रोक पाएंगे मेरा?
आएगा अब उज्ज्वल सबेरा.

इस राह  का राही हूँ मैं
लेकिन नहीं आग्रही हूँ मैं.
है  मुझे  मंजूर  सबकुछ
यह भी सही, वह भी सही.
हो नील गगन या हरी मही.
हमें काटना है तिमिर घनेरा
आएगा अब उज्ज्वल सबेरा.

राह  की  मर्जी  है  यह तो;
फूल  दे  या  शूल  पथ  में?
पर रोक नहीं  पायेंगे  हमको.
सुगन्धि  में  रुकना  नहीं और
चुभन  में  भी  झुकना  नहीं है.
दे रही आवाज मुझको है सवेरा
आएगा ....अब उज्ज्वल सबेरा.

जीवन  तो  नित संग्राम है
कहीं  दृश्य  नययाभिराम है
तो  मचा  कहीं  कोहराम  है.
कह लो जीवन, या मौत उसे
वह  गति  में  एक विराम है.
हर तिमिर के बाद आता सवेरा
आएगा... अब उज्ज्वल सवेरा.

इस विराम की एक विशेषता
देता है अवसर एक सुनहरा.
शोधन और परिशोधन का
परिवर्द्धन और संशोधन का.
लक्ष्य को फिर से पा जाने का
नभ में फिर से छा जाने का.

सितारों के भी पार जाना, लक्ष्य मेरा.
करूँ प्रक्रीर्णित वहीँ से निर्मल प्रकाश,
छोड़ भागे, इस मही को तिमिर घनेरा, 
आएगा, आएगा अब उज्ज्वल सबेरा.
आएगा, आएगा अब उज्ज्वल सबेरा.