मन की श्रद्धा, भाव बुद्धि की
आह्लाद हृदय का अर्पित सबको
तन के कर्म, श्रद्धानवत होकर
शत शत वंदन करते हैं सबको ।
नमन है मेरा, अभिनंदन है
वंदन उपवन के हर माली का
और वंदन है इस प्राणवान को
जिसने सेंचा है इस उपवन को ।
सींचा था जिसने रक्त स्वेद से
तन- मन पूरा ही निचोड़ डाला
होगा किन्तु कितना प्रसन्न वह
कितना सुरभित उपवन रच डाला?
मैं भी आखिर जो कुछ भी हूँ
खिला बढ़ा, इसी उपवन मे
अब जो कुछ भी पहचान बनी है
उसकी नींव पड़ी इसी उपवन मे ।
आज भी, अब भी भूल न पाता
जो स्नेह मिला शिक्षण प्रांगण मे
कक्षा शिक्षण की बात न पूछो
थी विशेष बात, हर शिक्षण मे ।
चिर कृतज्ञ मैं आप सभी का
करबद्ध प्रणाम स्वीकार करो,
मन की श्रद्धा, भाव बुद्धि की
आह्लाद हृदय का अर्पित सबको।
यह भाव सुमन अर्पित सबको
यह भाव सु-मन अर्पित सबको॥
डॉ जय प्रकाश तिवारी