गीत मेरे बोल !
आज गमगीन क्यों है?
क्यों हुआ इतना उदास ?
आज तू फिर मौन क्यों है?
गीत मेरे बोल !
ये लूटी आबरू किसने ?
क्या कहा - 'उसने'
जिनपर था दयित्व सुरक्षा का
तेरी अस्मिता की रक्षा का
गीत मेरे!
मुखर हो अब चुप न बैठ !
गीत मेरे!
तू केवल कविता नहीं है
मन्त्र है, यन्त्र है, तंत्र है तू
यह दुनिया यदि बहुरंगी है
तो… तू भी तो बजरंगी है
मूर्च्छित चेतना जगायेगा कौन?
तेरे सिवा दायित्व निभाएगा कौन?
गीत मेरे !
तेरे अंदर तो तेज है वह
तू जाएगा पूरा समाज निगल
तू प्रखर हो अब चुप न बैठ !
अंगारे बरसा, तू आग उगल!
फूटेगा नवांकुर उसी भस्म से
तू उसको संस्कारित करना
तू उसको अलंकारिक करना
बनाना सभ्य-सुशील-तेजस्वी
उर्वरा और अत्यंत ऊर्जस्वी
गीत मेरे ! ओ गीत मेरे !!
डॉ जयप्रकाश तिवारी
आज गमगीन क्यों है?
क्यों हुआ इतना उदास ?
आज तू फिर मौन क्यों है?
गीत मेरे बोल !
ये लूटी आबरू किसने ?
क्या कहा - 'उसने'
जिनपर था दयित्व सुरक्षा का
तेरी अस्मिता की रक्षा का
गीत मेरे!
मुखर हो अब चुप न बैठ !
गीत मेरे!
तू केवल कविता नहीं है
मन्त्र है, यन्त्र है, तंत्र है तू
यह दुनिया यदि बहुरंगी है
तो… तू भी तो बजरंगी है
मूर्च्छित चेतना जगायेगा कौन?
तेरे सिवा दायित्व निभाएगा कौन?
गीत मेरे !
तेरे अंदर तो तेज है वह
तू जाएगा पूरा समाज निगल
तू प्रखर हो अब चुप न बैठ !
अंगारे बरसा, तू आग उगल!
फूटेगा नवांकुर उसी भस्म से
तू उसको संस्कारित करना
तू उसको अलंकारिक करना
बनाना सभ्य-सुशील-तेजस्वी
उर्वरा और अत्यंत ऊर्जस्वी
गीत मेरे ! ओ गीत मेरे !!
डॉ जयप्रकाश तिवारी
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteThanks
ReplyDeletesundar abhivyakti
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
पीड़ा के संगीत में, दबे गीत के बोल।
देश-वेश-परिवेश में, कौन रहा विष घोल।।