Thursday, October 30, 2014

सुन, ओ मेरी जिंदगी

अभी विवश हूँ मैं
इस विवशता में भी 
इस मन की आशा 
दिल के उदगार 
कंठ से फूटकर 
गीत बन दासोंदिक 
जो गूँज रहा है 
तेरे बिना अधूरा है 
तू आ जा., 
अब तो साथ निभा जा 
मिशन अभी अधूरा है 
तू थाप देकर, साज देकर  
गीत को संगीत बना जा 
विश्वास है मुझे
जो नहीं के पाया अकेले 
अपनी संयुक्त वाणी करेगी 
कोलाहल यह छटेगा 
हर्ष की बदली छायेगी 
जब गीत का स्वर 
हाथों में मशाल बन जायेगी 
देश मेरा खुशहाल होगा 
न बेकारी होगी, न खून बहेगा 
तब.…   उधार की नहीं 
वास्तविक जिंदगी जिएंगे 
शिकायतें दूर होगी 
मैं खुल के गाऊंगा 
तू खुल के नाचेगी 
वह दिन आयेग… 
वह दिन जरूर आएगा 
ओ मेरी जिंदगी !
ओ मेरी जिंदगी !!
डॉ जयप्रकाश तिवारी 

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