तू मौन क्यों है?
सता रही जो वेदना,
अरे! वह कौन है?
उठाओ अपनी दृष्टि
एक नजर देख तो सही,
सामने यह खड़ा कौन है?
ओ मेरी संवेदना!
ओ मेरी संवेदना!!
हाँ, ठीक कहा तूने
तेरा स्थूल शरीर हूँ मैं.
लेकिन जगह ढूंढ इसमें
जहाँ कोई जख्म नहीं है.
फिर भी विहँस रहा हूँ यदि
तो इसका भी कारण है.
कहीं कोई है जो
इस दर्द का निवारण है.
दर्द मेरे पास भी
था दौड़ कर आया.
देख इतने जख्म यहाँ,
वह खुद शरमाया.
टिकने की कोई जगह
न अब तक उसने पायी.
पोर-पोर में अन्दर मेरे
वह बेदर्द समाई.
ओ मेरी संवेदना!
अब दर्द बाहर खड़ा
बड़ी देर से कराह रहा है.
पतीक्षा सूची का दर्द
धीरे-धीरे उसकी भी
समझ में आ रहा है.
ओ मेरी संवेदना!
कोई गीत बन कर
अधरों को तो खोल.
कोई गजल बन कर
अपने दिल के ताले खोल.
शब्दों की गठरी को तौल,
प्रज्ञान विज्ञान की भाषा बोल.
वेदनाओं की दरिया बहा जा.
कैक्टस में भी फूल खिला जा.
भावनाओं की पौध उगा जा.
ओ मेरी संवेदना!
तू मौन क्यों है?
आज तू अल्पना बन कर
चहुँ ओर बिखर जा.
रंगोली बन कर फ़ैल जा.
कल्पना बन कर संवर जा.
ओ मेरी संवेदना!
यह कल्पना ही तो
सृजन का आधार है.
तेरी यह वेदना,
सृजन की वेदना है.
अल्पना-रंगोली-कल्पना
बन कर बाहर आ जा.
ओ मेरी संवेदना!
ओ मेरी संवेदना!!
तुम्हारे अमूर्त रूप को,
उस सौम्य स्वरुप को.
यही करेगा मूर्त,
सामने खड़ा जो स्थूल रूप.
ओ मेरी संवेदना!
ओ अन्तः की वेदना!
कुलबुला रही जो चेतना
उसे नयी दिशा दे.
तन तो है यह दास तेरा.
उसे सृजन पथ दिखा दे,
ओ मेरी संवेदना!
ओ मेरी संवेदना!!
मधुर चिन्तनशील सृजन पूर्व की भांति गहनता की रश्मियों का प्रस्फुटन संवेदित करता है .....यथार्थ वंचन साधुवाद डॉ. साहब /
ReplyDeleteबहुत - बहुत आभार उत्साह वर्द्धन हेतु.
Deleteसंवेदना को संबोधित बेहद सुन्दर रचना!
ReplyDeleteरचना पसंद आयी. बहुत - बहुत आभार उत्साह वर्द्धन हेतु.
Deleteबहुत सुंदर आवाहन ! आभार!
ReplyDeleteरचना पसंद आयी. बहुत - बहुत आभार उत्साह वर्द्धन हेतु.
Deleteओ मेरी संवेदना!
ReplyDeleteओ अन्तः की वेदना!
कुलबुला रही जो चेतना
उसे नयी दिशा दे... apni hi soyi samvedna ko jagrat karne ka adbhut yatn
हमे लगता है खुद को संबोधित करना श्रेयष्कर है. दूसरों पर उंगली उठाने और जागृत करने से अच्छा है स्वयं को ही टटोल लिया जाय. पहले उस लायक बना लिया जाय. वैसे यह विधा सर्वथा नवीन नहीं है. हाँ, इसका प्रचलन अवश्य बहुत ही कम है. आभार उत्साह वर्द्धन हेतु.
Deleteसंवेदनाओं को दिशा मिल जाए तो वो सार्थक हो जाती हैं ... सुन्दर रचना है ...
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