Sunday, February 19, 2012

त्रिकोण का विभत्स कोण


 
ग्वाला दूध दुह चुका था 
और अब थन को,
बूंद- बूंद निचोड़ रहा था.                                                                                         
उधर खूंटे से बंधा बछड़ा
भूख से बिलबिला रहा था.


इसे देखकर ममतामयी 
गाय कुछ कसमसाई.
उसकी ममता उभर आयी.
उसने अपना एक पैर उठाया,
ग्वाले ने पीठ पर डंडा चलाया.
भूखे बछड़े की आँखों में 
तब गर्म खून उतर आया.

फिर संवेदनशील 
गाय ने ही उसे समझाया,
बेटा! अब दूध की आस छोड़,
तू चारे से अपनी भूख मिटा.
यह मानव तो बहुत भूखा है..
दूध और अन्न की कौन कहे
कभी-कभी, बालू- सीमेंट- 
सरिया- पुल और सड़क 
भी पचा जाता है. 
फिर भी इसकी भूख 
नहीं मिटती, पेट नहीं भरता.

 
मुझे तो बुढापे तक  
सहनी है इसकी पिटाई.
जब हो जाउंगी अशक्त, 
ले जाएगा मुझे कोई कसाई.
फिर भी भूल जाती सबकुछ ,
जब यह पुचकारता है मुझे 
कहता है - 'माँ' और 'माई'.
 

20 comments:

  1. मार्मिक रचना, शर्मनाक सत्य!

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    1. लेकिन उन्हें इसका दर्द कब महसूस होगा जो इसका कारण है. यह बेईमान इंसान सम्वेदंशाल मानव कब बनेगा? आखिर कब? आभार आपका.

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  2. क्या बात है डॉ.साहब! वास्तव में संवेदना मर गयी है,प्रलम्भन, हठ, तृष्णा का स्वर नक्कारा बन गया है ,तूती की आवाज बन कर रह गए हैं हम , बड़े भारी मन से हमने आज एक कविता का सृजन किया है जो आपकी अभिव्यक्ति के साथ संयोग रखती है ......मार्मिक रचना को साधुवाद ../

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    1. हां, शायद हम लोग इंसान से हैवान बन रहें हैं. आखिर नाद्दनी भी कब तक केंगे. और यह नादानी नहीं बेशर्मी है.

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  3. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...

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    1. शायद हम लोग इंसान से हैवान बन रहें हैं.

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  4. एक कटु सत्य को दर्शाता मार्मिक चित्रण

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    1. लेकिन इस असंवेदना और ग्रिनित लोभ की कुत्सित सच्चाई को अब बदलना होगा. नारी शक्ति को भी आगे आना होगा. कई बार नारी जगत ने ही निर्दयता, लोभ, लालच, आसक्ति और माया-ममता से गिरे मानव मन में विवेक और सत-चेतना जागृत किया है.

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  5. बहुत बढ़िया प्रस्तुति
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी लगा रहा हूँ! सूचनार्थ!
    --
    महाशिवरात्रि की मंगलकामनाएँ स्वीकार करें।

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    1. Abhar, manch pr is rachna ko sthan dene aur sandrsh ko jn-jn tk failaane ke liye.

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  6. बहुत ही मार्मिक रचना..
    बेहद दुखद...

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    1. लेकिन इस असंवेदना और ग्रिनित लोभ की कुत्सित सच्चाई को अब बदलना होगा. नारी शक्ति को भी आगे आना होगा. कई बार नारी जगत ने ही निर्दयता, लोभ, लालच, आसक्ति और माया-ममता से गिरे मानव मन में विवेक और सत-चेतना जागृत किया है.

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  7. शायद नियति को यही स्वीकार है.

    महाशिवरात्रि की मंगलकामनाएँ

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    1. यह नियति नहीं, मानवीय संवेदनाओं का ह्रास है. इसे विकसित किया जा सकता है, लेकिन कैसे? यह नहीं समझ में आ रहा है. जब इंसान सब कुछ जानकर भी अनजान बना रहे तो उसे समझाया - बुझाया भी तो नहीं जा सकता. प्रयास हमी आप को करना होगा. कभी तो चेतना जागृत होगी. इसीलिए इस संवेदना को सामने लाया गया है. धन्यवाद.

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  8. सभी पधारने वाले सुधी समीक्षकों का आभार. सभी को महा शिवरात्रि पर्व की मंगल कामनाएं.मंगलकामनाएँ.

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  9. मार्मिक और सही प्रस्तुति !

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  10. बेटा! अब दूध की आस छोड़,
    तू चारे से अपनी भूख मिटा.
    अब चारे का भरोसा भी न रहा... उसे भी खा ले रहे हैं....
    सार्थक रचना...
    सादर

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    1. मानवीय मूल्यों में यह ह्रास हमें और कितना नीचे गिराएगी. हर गर्त के बाद सृंग आता है. मानवीय मूल्यों का विकास कब होगा? रचना भावनामयी को झकझो रही है. लेखन सार्थक सा लगने लगा है अब. आशा की किरण भी दीखने लगी है. सभी साथियों का आहवान एक सार्थक कदम उठाने के लिए.

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  11. मार्मिक ... दर्द उतारा है इन शब्दों में ... और हम हिप्पोक्रेट गाय को माँ कहते हैं ...

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