Sunday, January 22, 2012

प्रेम तो निर्मल दिव्य तरंग है.


'प्रेम' सरस- सर्वत्र - सनातन,
सागर कलोल यह करता है.
जो होता जितना संवेदी,
उर उतना उसके रहता है.

जिसे समझते हो निजी संपत्ति,
वह तो भ्रम है, एक धोखा है,
सहित जिससे, अभिसिंचित वह,
रहित उससे, रेत सम सूखा है.

अभिव्यक्त वहीँ होता है यह,
जहाँ क्षमता धारणशीलता की.
ये तो निर्मल हैं, दिव्य तरंगें है,
नहीं इसमें कहीं कुछ क्षुद्रता सी.

बन जाता व्यक्ति जो क्षुद्र/महान,
वह पात्र की मिजी पात्रता है.
टिक पाती कितनी अवधि तक,
है संवेदना, नहीं स्वतन्त्रता है.

जब बात स्वतन्त्रता की आयी,
मानव करता है प्रायः दुरुपयोग.
कुछ ही होते इतने सुलझे,
जो करते इसका सदुपयोग.

सदुपयोग इसे जो करते हैं,
अलौकिक रूप विचरते हैं.
नहीं मानते अनुचित नियम,
वे तो धार में प्रेम के बहते हैं.

जो धार प्रेम की बहता है,
वह सृजन कार्य को करता है.
प्रेम तो है स्वभाव से योजक,
ध्वंश नहीं वह करता है.

8 comments:

  1. सदुपयोग इसे जो करते हैं,
    अलौकिक रूप विचरते हैं.
    नहीं मानते अनुचित नियम,
    वे तो धार में प्रेम के बहते हैं.

    आपकी अनुपम प्रस्तुति संग्रहणीय है.
    सुंदर प्रेरक प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार,तिवारी जी.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
    आपका दर्शन और सुवचन मेरा मनोबल बढ़ाते हैं.

    ReplyDelete
  2. जब बात स्वतन्त्रता की आयी,
    मानव करता है प्रायः दुरुपयोग.
    कुछ ही होते इतने सुलझे,
    जो करते इसका सदुपयोग...

    खुबसूरत लाइने ,
    बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
  3. आभार आप दोनों मनीषियों का, सकारात्मक एवं उत्साह वर्द्धक तिपन्नियों का.

    ReplyDelete
  4. आदरणीय श्री जे.पी.तिवारी जी, सर्वप्रथम आपको मेर प्रणाम स्वीकार हो I
    आभारी हूँ आपका जो आपने मेरे ब्लाग पर अपने अनमोल विचार प्रकट
    किये I उम्मीद करता हूँ भविष्य में भी आप मेरा उत्साहवर्धन करते रहेंगे I
    मेरे ब्लाग पर आपका सर्वदा स्वागत है I
    आपका शुभचिन्तक,
    सुरेश कुमार

    ReplyDelete
  5. जो धार प्रेम की बहता है,
    वह सृजन कार्य को करता है.
    प्रेम तो है स्वभाव से योजक,
    ध्वंश नहीं वह करता है.

    इस प्रेम को शत शत नमन ! बहुत प्रेरक कविता!

    ReplyDelete
  6. प्रेरक रचना,पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी लगी,...तिवारी जी बधाई स्वीकारें
    बेहतरीन पोस्ट....
    WELCOME TO new post...वाह रे मंहगाई...

    ReplyDelete
  7. जो किया प्रेम का है वर्णन,
    वह है सटीक औ है विस्तृत।
    शायद उनको कुछ लाभ मिले,
    जो हुये प्रेम में युवक भ्रमित।
    मेरी बधाई स्वीकार करें,
    कविता सराहनिय है निश्चित।
    कृपया इसे भी पढ़े-
    क्या यही गणतंत्र है

    ReplyDelete
  8. सभी आगंतुकों का आभार, और उनके सकारात्मक विचारों का स्वागत

    ReplyDelete