Sunday, January 15, 2012

खोज यह किसकी: प्रज्ञान की या विज्ञान की?


'तम' काला था अँधियारा था
दुर्गम - दुर्बोध - भयंकर था.
नेत्रों से बरसते, जब अंगारे,  
शूरमाओं को दीखते तब तारे.
जहाँ डर के हुए वे शरणागत,
और नहीं, प्रस्थर - शंकर थे.

सुन आराधना प्रज्ञान जगत की,
देख साधना विज्ञान जगत की,
'तम' ने अपना आवरण हटाया,
असली अब रूप प्रकट हो आया.

काली कुरूप भयंकर थी जो,
विकराल-काल-प्रलयंकर जो,
हो गयी वह 'क़ाली' से गोरी.
'गौरी' नाम अब उसने पाया.

पर्वत-पहाड़ियों-प्रस्थर में थी,
जब तक सुषुप्त वह क़ाली थी.
जब हुयी प्रकट आवरण तोड़.
'अग्नि' रूप वह गोरी सी थी.

ठन  गयी  है  अब  दोनों ही में,
प्रज्ञान जगत, विज्ञान जगत में.
यह कहता 'देवी है', खोज हमारी है.
वह कहता 'ऊर्जा है' खोज हमारी है.

दोनों  ने  उसे  पर्वत  में  पाया,
अपना  अलग  सिद्धांत  बनाया.
कहता उसको 'शैलजा', 'पार्वती',
'हीट' और 'ऊष्मा' कहे उसे दूजा.

यह कहता 'देवी', परम चैतन्य,
वह कारण है मूल, वह चंचला है.
वह भी कहे कारण है, चंचला है 
चैतन्य नहीं, वह केवल ऊर्जा है.

'तम'  ने हो मुखर दिया निर्देश,
क्यों लड़ते हो, करते हो क्लेश.
शिला पर कालिमा खुद चढाओ,
श्यामपट्ट बनाओ, सत्य फैलाओ.

जो चंचला है, वही  'चिति'  है
जो शांत रूप, वह शिवशंकर है.
यह 'शक्ति' ही 'शिव' की ऊर्जा है,
बिना शक्ति, शिव भी प्रस्थर है.

हमने पाया है अब तक जो ज्ञान
इस तम का ही है सारा वरदान.
लड़ रहें हैं हम बना करके खेमा,
कितने  बड़े  हम  हैं -  नादान'.



10 comments:

  1. लड़ रहें हैं हम बना करके खेमा,
    कितने बड़े हम हैं - नादान'.
    वाह क्या बात है.........
    बड़े दिनों बाद इस ब्लॉग में आकर आज ऐसा लग रहा है आज ही मानो घर वापसी हुई है.....सार्थक एवं प्रभावी रचना के लिए सादर आभार !!

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  2. वाह विज्ञान और ज्ञान की जग का सुन्दर चित्रण और निराकरण दोनो ही कर दिया…………बहुत सुन्दर व सार्थक अभिव्यक्ति।

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  3. गौरव स्वागत है अपने घर में आपका. कैसे रहे कहाँ रहे इतने दिन? वैसे आपके विद्यालय पर हुए प्रोग्राम के फोटोग्राफ्स देखे थे.

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  4. वंदना जी !
    बात कुछ ऐसी हैकी मन में एक विचार आया. आज मकर संक्रांति है, अध्यात्म और विज्ञान दोनों ही के लिए यह दिन महत्वपूर्ण है. यह एक वैज्ञानिक घटना है जब पौष मास में सूर्य मकर राशि पर आ गया है और सूर्य की दक्षिणायन से उत्तरायण की यात्रा प्रारंभ हो गयी है। लेकिन यदि यह केवल विज्ञान की बात होती तो इस घटना का आध्यात्मिक महत्व क्यों होता? क्योकि इस घटना का जा जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. इसलिए अध्यात्म ने इसे अपना लिया. प्रश्न है क्या इसे अध्यात्म जगत ने विज्ञान से सीखा? या विज्ञान जगत ने अध्यात्म से जाना? इसका व्यापक उत्तर हो सकता है, मै केवल यह कहना चाहता हूँ की यह विज्ञान जगत और अध्यात्म जगत की अपनी-अपनी अलग खोज है, लेकिन सत्य दो तो हो नहीं सकता.इसलिए निष्कर्ष एक है. उसी प्रकार शक्ति, एनर्जी, चिति, चेतना को लेकर दोनों ने ही अपने=अपने तरीके से खोज किया है. उनमे सामी भी है और भेद भी. जहां साम्य है वे सत्य के सन्निकट हैं और जहां भेद है दूर हैं. इन दोनों विधावों को विरोधी न मानते हुए उसमे सामंजस्य ढूंढ कर अंतिम सत्य तक पूछने का प्रयास करना चाहिए. यही सोचकर इस विषय को लेखन और विचार का विन्दु बनाया. आगे समीक्षकों की अपनी-अपि राय, सम्मति. सबके विचारों की, प्रतिक्रिआओन की प्रतीक्षा है.

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  5. इस सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
    ब्लॉग पर आगमन और समर्थन प्रदान करने के लिए बहुत - बहुत आभार.

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  6. गौरव का प्रणाम स्वीकार करें..
    आजकल "अभियान भारतीय" को ग्रामीण अंचलों में पहुंचाकर भारतीयता के ज्योत को प्रखरता प्रदान करने में शिद्दत से जुटा हुआ हूँ मै अतः ब्लॉग लिखना और पढना नहीं हो पा रहा था पर अब मै नियमित रूप से आप सभी के समक्ष उपस्थिति दर्ज करता रहूँगा...मेरे घर में मेरा स्वागत करने हेतु सादर आभार !!
    शायद आप फेसबुक पर भी हैं पर मै आपको ढूंड न सका इसलिए अपने प्रोफाइल का लिंक दे रहा हूँ :-
    http://www.facebook.com/profile.php?id=100000940438978&ref=tn_tnmn

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  7. बहुत सुंदर और ज्ञान वर्धक !

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  8. ज्ञान और विज्ञानं की बहुत ही सार्थक और सटीक प्रस्तुति,..ज्ञानवर्धक पोस्ट,.बधाई स्वीकार करे
    welcome to new post--काव्यान्जलि --हमदर्द-

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  9. दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं.मकर संक्रांति पर दो विधाओं पर सुंदरतम सृजन.

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