आशा है अलख जगा रही
अब आगे बढ़ते जाना है.
किया है जो मन में संकल्प
अब लक्ष्य उसे ही पाना है.
तिमिर की औकात कितनी?
परिव्याप्त हो चाहे ये जितनी.
वह जानती इस बात को भी
यहाँ अब है नहीं मेरा गुजारा.
यहाँ उषा की लालिमा
नभ के पटल जब छाएगी,
हो तिमिर या तम घनेरा
नजर क्या फिर आएगी?
यह जीवन महासंग्राम है
इसमें कहाँ विश्राम है?
फिर श्रृंग हो, या गर्त हो;
नाप लेंगे हम ये दूरी,
गगन का अवकाश हो,
अन्दर मही की पर्त हो.
रोक क्या पायेंगे हमको,
छल - कपट की ये बाधाएं.
दूर तक जाना है हमको
पार करके ये अवरोध सारे.
तिमिर की औकात कितनी?
परिव्याप्त हो चाहे ये जितनी.
दूर तक जाना है हमको
पार करके ये अवरोध सारे.
'रोक क्या पायेंगे हमको,
ReplyDeleteछल - कपट की ये बाधाएं.
दूर तक जाना है हमको
पार करके ये अवरोध सारे.
तिमिर की औकात कितनी?
परिव्याप्त हो चाहे ये जितनी.
दूर तक जाना है हमको
पार करके ये अवरोध सारे'
प्रेरक प्रस्तुति बहुत-बहुत आभार
सर! धन्यवाद. प्रतिक्रया का स्वागत. अभिवादन पधारने का. समालोचना का.
ReplyDeleteआशा है अलख जगा रही
ReplyDeleteअब आगे बढ़ते जाना है.
किया है जो मन में संकल्प
अब लक्ष्य उसे ही पाना है.
...bahut hi prerak sundar kavita...aabhaar.
हार्दिक स्वागत. रचना पसंद आई इसके लिए आभार आप का.
ReplyDeleteयह जीवन महासंग्राम है
ReplyDeleteइसमें कहाँ विश्राम है?
फिर श्रृंग हो, या गर्त हो;
नाप लेंगे हम ये दूरी
बहुत सुन्दर रचना , सुन्दर शब्द संयोजन
bahut sunder shabd sanyojan. prabhavshali srijan.
ReplyDeleteश्री एस एन शुक्ल जी,
ReplyDeleteअनामिका जी,
धन्यवाद जी, आपके पधारने और समालोचक टिप्पणी के लिए. रचना पसंद आई, जानकर अच्छा लगा,उत्साह वर्द्धन हेतु आभार.
तिमिर की औकात कितनी?
ReplyDeleteपरिव्याप्त हो चाहे ये जितनी.
वह जानती इस बात को भी
यहाँ अब है नहीं मेरा गुजारा.
आशा और विश्वास का संदेश देती सुंदर रचना !
मेरेसहज, सरल शब्दों के प्रयोग से सुंदर भावाभिव्यक्ति। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
ReplyDeleteब्लॉग पर भी आपका स्वागत है-
ReplyDeleteतिमिर की औकात कितनी?
ReplyDeleteपरिव्याप्त हो चाहे ये जितनी.
दूर तक जाना है हमको
पार करके ये अवरोध सारे'--
गंभीर विचारनीय सृजन को सम्मान ,शुभकामनायें डॉ साहब ...../
रोक क्या पायेंगे हमको,
ReplyDeleteछल - कपट की ये बाधाएं.
दूर तक जाना है हमको
पार करके ये अवरोध सारे.
तिमिर की औकात कितनी?
परिव्याप्त हो चाहे ये जितनी.
दूर तक जाना है हमको
पार करके ये अवरोध सारे.
...jindagi ke dushwariyon se baahar nikalne ka hausla buland karti prerak prastuti ke liye aabhar!
Thanks to all for their kind visit and creative comments. Thanks once again.
ReplyDeletevery nice ....
ReplyDeletecharcha manch se yaha tak aa gai...
padhkar bahut accha laga...
very nice
ReplyDeleteThanks, welcome at this blog.
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