तू मेरे प्रथम -ज्ञान की प्रतिमा
तेरे स्फुलिंग मेरी ज्योति जली.
देखा जगत को अग्नि में जलते
क्या 'यश' मेरी भी जल जाएगी?
क्या जायेगी सूख ये बगिया मेरी
ये वाटिका आज जो है हरी-भरी.
सच मनो तेरे चिंतन ने ही मेरे
अंतर्मन में अति उत्साह भरी.
तुझे अजर अमर-अजीर्ण बनाने
छोड़ के प्रासाद निकल पड़ा हूँ.
दवा तेरी जग - दंश हरेगा ,
धरा की यश का सुयश होगा .
नहीं चाहता था तुझे खोना
अब भी नहीं चाहता हूँ खोना.
लेकिन खोना और पाना क्या
बिना 'निर्वाण' सब खुछ सूना.
एक प्रतनिधि छोड़ मैं आया हूँ
तेरे मन को वह बहलायेगा.
लेकिन वह भी मोह ही ...है..
'निर्वाण' में बाधा लाएगा....
जब तू सचेत हो जायेगी
मुझे दोष न तब दे पाएगी.
मेरा क्या, मै तो करूंगा
प्रतीक्षा तेरी! चिर प्रतीक्षा.
तुझे सिद्धार्थ बनकर जीना है
दायित्व मातु-पिता का ढोना है.
तुझको फिर बुद्ध बना करके
धरा के यश को फैलाऊंगा .
तुम नहीं केवल यशोधरा
तुम तो इस धरा की यश हो.
ढूंढो तुम निर्वाण जगत में
मैं पथ -निर्वाण जगत को दूंगा .
हम और तुम नहीं हैं दो
यह अंतर केवल जगत बीच .
'निर्वाण जगत' में भेद नहीं
अनंत ये सारा शून्य बीच .
अनंत और शून्य दो अति वाद हैं
इन अतिवादों से हमें बचना है.
अपनाना है हमको मध्य मार्ग
माध्यम का आदर्श बताना है.
एक बार हूँ चाहता फिर बतलाना
अविश्वास नहीं तुम मुझपर लाना.
जब तक जगत में दुःख होगा
यह बुद्ध नहीं फिर मुक्त होगा.
वाह ……………बेहद गहन और सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअनंत और शून्य दो अति वाद हैं
ReplyDeleteइन अतिवादों से हमें बचना है.
अपनाना है हमको मध्य मार्ग
माध्यम का आदर्श बताना है.
डॉक्टर साहब, बहुत सही कहा है। मध्य मार्ग ही हमें अपनाना चाहिए।
नहीं चाहता था तुझे खोना
ReplyDeleteअब भी नहीं चाहता हूँ खोना.
लेकिन खोना और पाना क्या
बिना 'निर्वाण' सब खुछ सूना.
mann nirvaan ke arth ke kareeb hai
बहुत ही सुंदर .....गहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteजब तक जगत में दुःख होगा
यह बुद्ध नहीं फिर मुक्त होगा.
लेकिन क्या जगत का दुःख कम हुआ ? खत्म होने की तो बात ही दूर है ..
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 07- 06 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच
बहुत उम्दा रचना.
ReplyDeleteसार्थक सुन्दर चिंतन...
ReplyDeleteतुम नहीं केवल यशोधरा
ReplyDeleteतुम तो इस धरा की यश हो.
ढूंढो तुम निर्वाण जगत में
मैं पथ -निर्वाण जगत को दूंगा ...
बहुत गहन और सार्थक चिंतन...आभार
तुम नहीं केवल यशोधरा
ReplyDeleteतुम तो इस धरा की यश हो.
ढूंढो तुम निर्वाण जगत में
मैं पथ -निर्वाण जगत को दूंगा
सुन्दर अभिव्यक्ति
बधाई हो आपको - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
एक विलेख जो बृहद है सुखद है ममस्पर्शी है ग्राह्य है ,
ReplyDeleteजब तू सचेत हो जायेगी
मुझे दोष न तब दे पाएगी.
मेरा क्या, मै तो करूंगा
प्रतीक्षा तेरी! चिर प्रतीक्षा.
सादर,बंदन ......
सभी सम्मानित समीक्षकों का स्वागत और प्रतिक्रियाओं का समादर. सभी का उत्तर 'चर्चा-परिचर्चा बुद्ध के पत्रों पर' शीर्षक में देने का प्रयास करूंगा, वहाँ मेरा अपना निजी विचार भी वहाँ जरूर होगा. आप सभी का वहाँ स्वागत और प्रतिक्रियाओं की उत्सुकता से प्रतीक्षा रहेगी.
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