भ्रष्टाचार: महिमा पोटली की
बधी रहती थी घिग्घी सदा जिनकी हमसे
खड़े हो गए देखो आज वे कैसे तन के ?
रहते थे घुसकर बिलों में कभी जो.
अब करते हैं बाते वे देखो अकड़ के.
खुला राज जब भौचक्के हुए हम.
यह उनका नहीं ये दम हैं पोटली के.
ये दौलत की पोटली जो करा दे वो कम है.
सही फाइलों को भी झटक देते हैं झट से.
अब आदत इतनी बिगड़ गयी है उनकी.
फेंक देते हैं वे पोटली जो हल्की पलट के.
ये दौलत की पोटली जो करा दे वो कम है.
ReplyDeleteसही फाइलों को भी झटक देते हैं झट से.
bahut dukhad satya hai
yathart ko batalaati hui saarthak rachann.badhaai sweekaren.
ReplyDeleteplease visit my blog and feel free to comment.thanks.
ये पोटली जो न करा दे वह कम है। सारी माया की जड़ और भष्टाचार की वजह है। सही है कि आज सबको वजनदार पोटली चाहिए।
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी
ये दौलत की पोटली जो करा दे वो कम है.
ReplyDeleteसही फाइलों को भी झटक देते हैं झट से....
दौलत बटोरने के लिए हाथ भी तो खाली चाहिएं ... इसके लिए तो गर्दन भी मरोड़ देंगे हाथ ...
अब इसका अंत होने ही वाला है,जनता जाग रही है यथार्थवादी लेखन !
ReplyDeleteलक्ष्मी जी की महिमा अपरमपार है !
ReplyDeleteसभी सम्मानित समीक्षकों का स्वागत और प्रतिक्रियाओं का समादर.
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