बुद्ध का पत्र यशोधरा के नाम
मन मेरा भी घबराया था.
रह रह के मन फिर सोचता है
औचित्य का प्रश्न कचोटता है.
मन पर हठ का जोर लगाया
व्रत उपवास का राह दिखाया.
लेकिन चला न कोई जादू
बार बार मन हुआ बेकाबू.
मृदुल हास परिहास ने तेरे
मुझको ऐसा नाच नचाया.
सुस्त सुनी और शांत मन को
चंचल और गतिशील बनाया.
लुट गयी नीद रात की मेरी
दिन का भी सुख चैन छिना.
सूना - सूना सब लगता है,
अन्दर बाहर एक तेरे बिना.
पहले तो ऐसी बात नहीं थी
क्या मन के अन्दर चाह नहीं थी?
किया अंतर सब इस दूरी ने
क्या संवेदना और जज्बात नहीं थी?
इस दूरी में क्या बात है ऐसी?
क्यों विह्वलता - चंचलता ऐसी?
गति से इसको क्या माप सकेंगे?
इस हास की कीमत जान सकेंगे?
इस एक हास की खातिर ही
दौड़े थे राम ' मृग' के पीछे.
इस एक हास की खातिर ही
भागे मधुसूदन 'मणि' के पीछे.
इस हास में इतना जादू क्यों?
परिहास में मन बेकाबू क्यों?
हास-परिहास सब मन के भाव
जब पूरित मन तब नहीं अभाव.
मैं क्यों भागू इसके पीछे?
क्या मिला उन्हें जो भागे थे?
उनको भी क्या मिल गया?
छल - वैर- घृणा जो साधे थे.
सब कुछ मन की ही माया है
कहीं खिला धूप कहीं छाया है.
मन को वश में करना होगा
इसकी चंचलता को हरना होगा.
थमती चंचलता - 'आक्टेट' से,
थमती चंचलता - 'अष्टांगयोग' से.
थमती चंचलता - 'यम-नियम' से,
थमती चंचलता - 'योग -क्षेम' से.
तुझे सोता छोड़ जब आया था
तब मेरा मन घबराया था.
अब मन में नहीं कोई हलचल
थम गया अंतर का कोलाहल.
जो तोड़ चुका जग बंधन को
वह कैद में क्या रह पायेगा?
आर्यसत्य और बोधिसत्व को
जन - जन तक फैलाएगा.
मन को पाषण करना होगा
धारण 'निर्वाण' करना होगा.
आर्य सत्य पहचानना होगा
अंतिम सत्य को जानना होगा.
निर्वाण ही सत्य है अंतिम
अंततः सबकी गति है अंतिम.
जब तक धारा पर दुःख होगा
यह बुद्ध नहीं फिर मुक्त होगा.
दुख धरा से वह मिटाएगा
सबको पद 'निर्वाण' दिलाएगा.
शब्द संकेत / निहितार्थ
'
आक्टेट' = रसायन विज्ञान के अक्रिय गैस की स्थिति जहां इलेक्ट्रान की चंचलता थम जाती है.
'अष्टांगयोग' = यह बौध दर्शन की साधना प्रक्रिया है.
'यम-नियम' = यह योग दर्शन की अष्टांग साधना क्रिया है.
योग -क्षेम' = यह गीता का दर्शन है.
निर्वाण = यह मुक्ति की अंतिम अवस्था है जहां से पुनः जन्म की, दुःख की सारी संभावनाएं समाप्त हो जाती है ठीक उसी प्रकार से जैसे भुने चने से अंकुरण की सारी संभावना समाप्त हो जाती है.
मृग = रामायण का चर्चित स्वर्ण मृग.
'मणि' = पौराणिक चर्चित कौस्तुभ मणि
बुद्ध ने तो मुक्ति पा ली पर यशोधरा की क्या गति ?
ReplyDeleteइस पाती के द्वारा बुद्ध के मन की बातों को बखूबी सहेजा है ...
http://geet7553.blogspot.com/2011/05/blog-post.html
यहाँ भी पढ़ें ...
ReplyDeleteतथागत
मन को साधने का मार्ग बताती सुंदर चित्रों से सजी भावपूर्ण कविता के लिये बधाई !
ReplyDeleteमेरी पसंद कि शख्सियतों में से एक हैं बुद्ध क्योंकि उन्होंने लोगों को ज़ुल्म और पाखंड से मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष किया.
ReplyDeleteहम पठान मुस्लिम होने से पहले बुद्ध ही थे.
तुझे सोता छोड़ जब आया था
ReplyDeleteतब मेरा मन घबराया था.
अब मन में नहीं कोई हलचल
थम गया अंतर का कोलाहल.
......
मन को पाषण करना होगा
धारण 'निर्वाण' करना होगा.
आर्य सत्य पहचानना होगा
अंतिम सत्य को जानना होगा.
......
निर्वाण ही सत्य है अंतिम
अंततः सबकी गति है अंतिम.
जब तक धारा पर दुःख होगा
यह बुद्ध नहीं फिर मुक्त होगा.
दुख धरा से वह मिटाएगा
सबको पद 'निर्वाण' दिलाएगा.
.....
.........बुद्ध से रहा न कोई प्रश्न
पर सच है यशोधरा का भी जीवन
गर मोक्ष का सत्य सब ढूंढेंगे
सृष्टि का चक्र रुक जायेगा .......
बहुत सुन्दर लिखा है.एक-एक शब्द प्रभावी.. . सबकुछ समेट लिया है.अच्छा लगा .आभार
ReplyDeletebahut badhia likha hai ...!!
ReplyDeletebadhai
निर्वाण ही सत्य है अंतिम
ReplyDeleteअंततः सबकी गति है अंतिम.
जब तक धारा पर दुःख होगा
यह बुद्ध नहीं फिर मुक्त होगा.
दुख धरा से वह मिटाएगा
सबको पद 'निर्वाण' दिलाएगा.
बहुत ही मनोहारी....
निर्वाण ही सत्य है अंतिम
ReplyDeleteअंततः सबकी गति है अंतिम.
जब तक धारा पर दुःख होगा
यह बुद्ध नहीं फिर मुक्त होगा.
दुख धरा से वह मिटाएगा
सबको पद 'निर्वाण' दिलाएगा.gautam buddha oer likhi saarthak rachanaa,badhaai aapko.
please visit my blog and leave the comments also.thanks.
बुद्ध के मन को भी किसी ने पढ़ा और उसको अभिव्यक्त किया. नहीं तो दोषी बुद्ध - तमाम आरोपों से नवाजे गए. पलायन और दायित्वों से विमुख होने के दोषी तो सदैव ही कहे जाते रहे. उनके मंतव्य के पीछे 'स्व ' से उबर कर जा 'पर ' समाहित हुआ तो सारे प्रश्न खुदबखुद उत्तर बन गए.
ReplyDeleteबुद्ध के अंतर्मन के संघर्ष को बहुत ही संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है..विश्व कल्याण के लिये 'स्व' का त्याग तो करना ही पडता है, यद्यपि यह अपनों के लिये कष्टदायी हो सकता है..
ReplyDeleteनिर्वाण ही सत्य है अंतिम
अंततः सबकी गति है अंतिम.
जब तक धारा पर दुःख होगा
यह बुद्ध नहीं फिर मुक्त होगा.
दुख धरा से वह मिटाएगा
सबको पद 'निर्वाण' दिलाएगा.
....बुद्ध के जीवन दर्शन को बहुत प्रभावंमयी ढंग से अंतिम पंक्तियों में रेखांकित किया है..आभार
प्रणाम,
ReplyDeleteसार्थक एवं ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए मुझ अकिंचन की ओर से आभार एवं बधाई स्वीकार करें |
चर्चा मंच से पहली दफा आपके ब्लॉग पर आना हुआ.आपकी सुन्दर अभिव्यक्ति ने मन को प्रभावित किया.
ReplyDeleteअनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.आपका हार्दिक स्वागत है.
सार्थक एवं ज्ञानवर्धक पोस्ट… बुद्ध के जीवन दर्शन को बहुत प्रभावंमयी ढंग से प्रस्तुत किया है..धन्यवाद
ReplyDeleteबुद्ध -दर्शन से परिचित करवाती एक सुंदर कविता ...भाव और उपदेशात्मकता का संगम हुआ है इस कविता में। शुभकामनाएँ ।
ReplyDeletehttp://shayaridays.blogspot.com/
ReplyDeleteमित्रो!
ReplyDeleteसर्व प्रथम ८-९ दिन बाद उपस्थित होने के लिए क्षमा प्रार्थना , iske पीछे कई कारण हैं जिसमे व्यस्तता और साथ में लप टॉप का न होना प्रमुख है. लेकिन आज जब उपस्थि हूँ आप सभी का बहुत - बहुत आभार!
@ संगीता जी!
आपने पूछा है की "यशोधरा की क्यागति?". nishchit roop से use bhi nirwaan की praapti hogi. buddh का to samkalp hi है, यशोधरा इससे अलग नहीं है -
जब तक धरा पर दुःख होगा यह बुद्ध नहीं फिर मुक्त होगा.
दुख धरा से वह मिटाएगा सबको पद 'निर्वाण'दिलाएगा.
@ वंदना जी!
रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए आभार!
@ डॉ.अनवर जमाल भाई!
आपने अच्छी जानकारी दी कि pathan pahle bauddh the. waise bhi bhaarat में adhikaans muslim dharm pariwartan से poorv bhartiy dhamon के hi poshak rahen हैं. aapke vichaaron का swagat.
@ Rashmi Prabha जी!
ReplyDeleteaapke vicharon से sahmat. बुद्ध से रहा न कोई प्रश्न पर सच है यशोधरा का भी जीवन गर मोक्ष का सत्य सब ढूंढेंगे
सृष्टि का चक्र रुक जायेगा .......aapka swagat is blog pr.
@ Rekha Sriwastaw जी!
aapka mulyankan awam samalochna thathy poorn और sargarbhit है. बुद्ध - तमाम आरोपों से नवाजे गए. पलायन और दायित्वों से विमुख होने के दोषी तो सदैव ही कहे जाते रहे. उनके मंतव्य के पीछे 'स्व ' से उबर कर जा 'पर ' समाहित हुआ तो सारे प्रश्न खुदबखुद उत्तर बन गए. aabhar, sameekshaa और padharne का.
@ डॉ. Kailash Chandra Sharma जी!
aapki tippni hamesh कि tarah prasangit और amuly है. yah aapki sahridayataa है jo itna sneh और सम्मान देते हैं.-.
विश्व कल्याण के लिये 'स्व' का त्याग तो करना ही पडता है, यद्यपि यह अपनों के लिये कष्टदायी हो सकता है.. satya vachan...
@ राकेश कुमार जी!
आप पहली बार पधारे हैं बहुत बहुत स्वागत है आपका. आशा है घर का रास्ता नहीं भूलेंगे. लेखन पसंद आया श्रम सार्थक हुआ.
@ मनोज भारती जी!
बुद्ध -दर्शन से परिचित करवाती एक सुंदर कविता ...भाव और उपदेशात्मकता का संगम हुआ है । आपकी टिप्पणी ने तो मन मोह लिया. कमियों को संकेतित करें तो और भी उपयोगी होगा.
अन्त में सभी समीक्षकों का आभार और पधारने के लिए
मित्रो!
ReplyDeleteहमें लगता है कि समीक्षकों क़ी जिज्ञाषा और बुद्ध के चरित्र को और अधिक स्पष्ट करने हेतु एक और पत्र लिखने क़ी आवश्यकता है . . प्रयास करोंग क़ी जिज्ञाषा और चरित्र के साथ न्याय हो सके .
अतुलनीय........
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