बात यहाँ प्रेम की है मित्र ! - भटक जाओगे.
अक्षरों को मत पकड़ना - बहक जाओगे.
शब्दों को मत पकड़ना - ठिठक जाओगे.
भाषा को मत पकड़ना - डूब जाओगे.
लिपि को मत पकड़ना - पिघल जाओगे.
इसके अर्थ को पकड़ना - संभल जाओगे.
निहितार्थ को पकड़ना - दौड़ जाओगे.
इसके भाव में डूबना - तर जाओगे.
अक्षरों को मत पकड़ना - बहक जाओगे.
शब्दों को मत पकड़ना - ठिठक जाओगे.
भाषा को मत पकड़ना - डूब जाओगे.
लिपि को मत पकड़ना - पिघल जाओगे.
इसके अर्थ को पकड़ना - संभल जाओगे.
निहितार्थ को पकड़ना - दौड़ जाओगे.
इसके भाव में डूबना - तर जाओगे.
तैरने की कोशिश न करना - गच्चा खाओगे.
डूबने की कोशिश न करना - उछल जाओगे.
कभी संदेह मत करना - मिट जाओगे.
विश्वास को मत तोड़ना - पा जाओगे.
त्याग को मत छोड़ना - छा जाओगे.
समर्पण को मत छोड़ना - बदल जाओगे.
नाम - ग्राम - रंग - रूप - सब भूल जाओगे.
प्रेम का पाथेय लेकर - प्रेमरूप बन जाओगे.
बात प्रेम की है मित्र ! - खुद प्रेम बन जाओगे.
डूबने की कोशिश न करना - उछल जाओगे.
कभी संदेह मत करना - मिट जाओगे.
विश्वास को मत तोड़ना - पा जाओगे.
त्याग को मत छोड़ना - छा जाओगे.
समर्पण को मत छोड़ना - बदल जाओगे.
नाम - ग्राम - रंग - रूप - सब भूल जाओगे.
प्रेम का पाथेय लेकर - प्रेमरूप बन जाओगे.
बात प्रेम की है मित्र ! - खुद प्रेम बन जाओगे.
बहुत सुंदर, प्रेम जैसे अकथनीय विषय को आपने सहज शब्दों से कह दिया है, प्रेम का पाथेय हमें मार्ग पर बनाये रखे, आभार!
ReplyDeleteअति सुन्दर विचार..अनुकरण करने योग्य बातें..
ReplyDeleteप्रेम मार्ग को प्रशस्त करता प्रेम पाथेय.. सुन्दर रचना
ReplyDeleteप्रेम का मूक प्रदर्शन अकथ्य रह जाएगा। भाषा उसे आर्थी आयाम देती है। अतः भाषा के साथ भाव को पकड़ कर तर जाना ही श्रेयस्कर है। बहुत अच्छी रचना।
ReplyDeleteअनुकरणीय विचार।
ReplyDeleteसभी विद्वान समीक्षकों का हार्दिक स्वागत और रचनात्मक टिप्पणी तथा सुझाव के लिए आभार.
ReplyDeleteआपको पढ़कर मैं भी ..प्रेम बन गयी
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 24 - 05 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच
kya baat hai sir sarthak kathya -ban sandhan kiye gaye .
ReplyDeleteshukriya ji
अर्थ , निहितार्थ , भाव को पकड़ने वाले ही तर पायेंगे ...प्रेम की बात है !
ReplyDeleteसुन्दर !
बहुत ही गहन एवं सार्थक चिंतन ।
ReplyDeleteअनुकरणीय है प्रेम पाथेय
ReplyDeleteबात प्रेम की है मित्र ! - खुद प्रेम बन जाओगे.
ReplyDeleteadbhud....
सभी विद्वान समीक्षकों का हार्दिक स्वागत और रचनात्मक टिप्पणी तथा सुझाव के लिए आभार.
ReplyDeleteमित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
ReplyDeleteआओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
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बुधवारीय चर्चा मंच ।