संकट और प्राकृतिक आपदाओं में
प्रायः टूट से जाते हैं सामान्य लोग,
हो जाते है बहुत निराश और भ्रमित.
किन्तु देखो जरा साहसी जापान को,
इस घोर आपदा... की बेला में भी...;
है कितना क्रियाशील और संयमित.
है अत्यंत सराहनीय - प्रशंसनीय
जापानियों की दुर्घर्ष जिजीविषा,
अदम्य साहस, अनुपम निष्ठा-धैर्य.
और पुनः - पुनः संभल उठने की
उसकी अद्भुत कला, जीवन शैली.
है वह जानता भलीभांति अब...
रोने से नहीं है काम चलनेवाला.
दिखावे वाले, नकली आंसू वाले,
साथ निभाने का वादा करनेवाले,
आज मिल जायेंगे बहुत ढेर सारे..
लेकिन आगे खुद ही आना होगा,
तो क्यों न तैयार कर लिया जाय,
स्वयं को ही, लाभ क्या निराशा से?
है यह निश्चितरूप से उनके लिए -
एक 'परीक्षा' और 'अपेक्षा' की घड़ी.
लेकिन परीक्षार्थी के लिए अपेक्षा से
कहीं बहुत महत्वपूर्ण है यह 'परीक्षा'.
यह परीक्षा ही करती है मार्ग प्रशस्त;
उन्नत उज्ज्वल भविष्य का निर्धारण.
अपेक्षा तो बनाती है परावलम्बी,
यह है बाधक बनने में स्वावलंबी.
फिर भी है इसका तात्कालिक महत्व.
लेकिन केवल तात्कालिक, प्राथमिक.
जो लोग बना लेते हैं अपेक्षा को ही
अपना मूल धरातल, बन जाते हैं वे
आग्रही - दुराग्रही और परावलम्बी.
धन्य है जापान का अदम्य साहस,
आत्मबल, यह धैर्य और सत्साहस.
उसकी अद्भुत जिजीविषा को सलाम.
जिसके दम पर कर लेगा पुनर्निर्माण.
सच है जापानवासियों की जिजीविषा को सलाम
ReplyDeleteसच में! बड़ी-से-बड़ी विपातियों के बाद उन्होंने पुनः निर्माण कर के अद्भुत धैर्य और संकल्प का परिचय दिया है। निश्चित ही यह अनुकरणीय है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर काव्य शिल्प में लिखी गई प्रेरक रचना।
अदम्य धैर्य और मुसीबतों को हराने की इच्छाशक्ति के लिए जापानवासी बादही और अनुसरण के पात्र हैं..
ReplyDeleteआभार इस कृति के लिए..
sangita ji, Manoj ji & Ashutosh ji
ReplyDeleteThanks for your kind visit and comments please.
वाकई ऐसी परिस्थिति में भी जापानियों ने धैर्य नहीं खोया और सम्पूर्ण शक्ति के साथ पुनर्निर्माण के कार्य में लग गए वह प्रसंसनीय है |
ReplyDeleteप्रणाम,
आज बड़े दिनों बाद आपके ब्लॉग में आकर ऐसा लग रहा है मानो बड़े दिनों बाद घर वापसी हुई है, बेहतरीन एवं सार्थक पोस्ट के लिए बधाई प्रेषित करते हुए आपसे मुझ अकिंचन पर अपना आशीर्वाद बनाये रखने का आग्रह करता हूँ...
गौरव...
जापान के लोगों को सलाम ! परीक्षा की घड़ी में हिम्मत न हारना व अपेक्षा के सहारे बैठे न रहना कोई उनसे सीखे !
ReplyDeleteजो लोग बना लेते हैं अपेक्षा को ही
ReplyDeleteअपना मूल धरातल, बन जाते हैं वे
आग्रही - दुराग्रही और परावलम्बी.
बहुत प्रेरक...कठिनाइयों का मुकाबला कराने में जापान का कोई ज़वाब नहीं..
धन्य है जापान का अदम्य साहस,
ReplyDeleteआत्मबल, यह धैर्य और सत्साहस.
उसकी अद्भुत जिजीविषा को सलाम.
जिसके दम पर कर लेगा पुनर्निर्माण.
सच मे हमे जापान से सबक लेना चाहिये। लाजवाब रचना
बधाई।