Monday, February 28, 2011

विखर रहा: 'देश-परिवार




देखा था मैंने तन को नाचते
मन को भी नाचते देखा था;
अब धन को नचाते देख रहा हूँ.
धन में होती शक्ति है कितनी?
यह बैठे - बैठे सोच रहा हूँ.

बड़ो-बड़ों को ताल पर इसके
झूमते थिरकते हिलते डुलते,
कमर लचकते देखा था...
अब कहे कमर की कौन?
यहाँ तो कमरा डोल रहा है.
अब कमरे तक भी रही न बात,
पूरा सांचा-ढाचा ही दरक रहा है....

धन का नशा अब छाने लगा है.
रिश्तों को भी ठुकराने लगा है
छोटा बड़ा यहाँ कोई नहीं है,
सबके पास जो ...पैसा... है..
बाप जहां पर रहा न बाप
बेटा न यहाँ पर बेटा है....
धन की इस ज्वाला ने देखो
पूरा परिवार, पूरा देश लपेटा है.

कैसे बच पायेंगे ये सब ?
कुछ सीख भी क्या ये मानेंगे?
हैं सभी चूर धन के मद में
क्या भ्रम को ये कुछ टालेंगे?
खो गयी कहाँ विवेक शक्ति अब?
यह जड़ता सी क्यों छायी है?
क्यों झुलस रहे सब अंगारों में?
क्या इसी में इनकी भलायी है?
अब रास्ता कौन दिखाएगा?
क्या समझ में इनके आयेगा?
यह धन आया है जहां से,
क्या चला वहीँ फिर जाएगा?
सब हैं धमकाते एक दूजे को.

रिश्तों की अब परवाह कहाँ?
क्या विखर सभी ये जायेंगे?
धरती पर इनके पाँव कहा?
होता है कष्ट देख के हमको,
क्या विखराव रोक हम पायेंगे?
उग्र आज है वही इस सबसे,
मान- सम्मान प्यार - दुलार 
कुछ अधिक ही जो पाया है.

अब होगा वही जो होना है.
कर्मों का फल भी तो ढोना है.
क्या शासक बनना इतना जरूरी?
चल रहा जनता पर दनादन छूरी.
कुछ तो डरो समाज से, इतिहास से,
आखिर एक दिन वह भी आएगा जब 
तू भ्रातृहन्ता, कुलहन्ता  कहलायेगा.

16 comments:

  1. जब विचारों का क़त्ल और धनिकों की पूजा होगे तो यही सब होगा ही.

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  2. प्रभावशाली रचना ! लेकिन असलियत खुलते देर नहीं लगती धन को ही पूजने वाले अंत में खाली हाथ ही रह जाते हैं !

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  3. आज के समाज का सटीक दृश्य रख दिया है ...रिश्ते बिखर रहे हैं ...चिंतन करने वाली रचना

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  4. मित्रों,
    आज २८ फ़रवरी को मेरे ब्लॉग-जीवन का एक वर्ष पूर्ण हुआ. जब हम इस एक वर्ष के जीवन का आकलन करतें है तो पाते है कि इस ब्लॉग ने मुझे बहुतकुछ दिया. और ब्लॉग है कौन-आप ही लोग और कौन? पहले तो मैं एकदम अह्जन था ब्लोजगत से, अ ब स द भी नहीं जनता था बेटे ने ब्लॉग बना और पहली रचना के लिए उस आर्टिकिल को पोस्ट किया जिसे एक मासिक पत्रिका 'युग गरिमा' में गुरु नानक जन्म दिवस के लिए लिखा था. फिर तो जो यात्रा शुरू हुई वह अनवरत चल रही है., एक पाठक और एक ब्लोगर के रूप में. मेरे ब्लॉग पर पहला कमेंट्स जिसका आया वह है वंदना नायर आस्ट्रेलिया से. पहली रचना 'जीवन क्या है' को चर्च्मंच में स्थान देने वाली चर्चाकार का नाम है- 'श्रीमती वंदन गुप्ता' है. इस एक वेश में कुल १४४ (144) रचनाये पोस्ट करने का अवसर प्राप्त हुआ. मुझे सुधार करना पडेगा इस कथन में. मुझे कहना चाहिए ब्लॉग के आकर्षण औए संवेदनशील रचनाकारों की संगती ने मुझसे करीब १४० नयी रचनाओं का श्रीं करा लिया. इसका पूरा-पूरा श्रेय ब्लॉग जगत को है. एक वेश कि पूर्णता पे जो कुछ परवर और राष्ट्र के बारे में अनुभव किया वही आज पासित है. काल १ मार्व्ह को मेरा प्रथम ब्लॉग जन्म वर्ष है. सभी ब्लोगर बंधुओं को उनके सहयोग समर्थन और प्रेरणा के लिए आभार, उनका वंदन और नामा इस विश्वास के साथ कि अगले वर्ष भी ऐसे ही आपका स्नेह प्यार और समर्थन मिलता रहेगा.

    सादर
    जय प्रकाश तिवारी

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  5. बहुत सटीक अभिव्यक्ति आज की व्यवस्था पर जहां पैसा ही सब कुछ है..बहुत सुन्दर और भावपूर्ण ..आभार

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  6. विचारोत्तेजक प्रस्तुति।
    साल पूरा करने पर बधाई और शुभकामनाएं।

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  7. जो भी हो धन - दौलत मन को शांति नहीं दे सकता...हम तो धन वाले के हस्र देख ही रहे है...समय से पहले और किस्मत से ज्यादा कुछ हो ही नहीं सकता ....आज के दौर का जीता- जागता स्वरुप प्रस्तुत करने का आभार....

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  8. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01-03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  9. धन का नशा अब छाने लगा है.
    रिश्तों को भी ठुकराने लगा है
    बिल्कुल सही ... बहुत प्रासंगिक विचार हैं इस रचना..... प्रभावी अभिव्यक्ति..... आभार

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  10. धन के नशे ने सब को मतवाला कर रखा है....जिसके पास है वो नशे में है...जिसके पास नहीं है वो इसके चक्कर में पडा हुआ है....
    बिहारी ने तो कह ही रखा है:
    .......वा पाए ही बौराय........

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  11. एकदम सटीक रचना!!

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  12. .

    डॉ तिवारी ,

    जब सुना करती थी की - 'सबसे बड़ा रुपया' , तब इतना गंभीरता से नहीं लिया था कभी इस वक्तव्य को । लेकिन अब लगने लगा है की यह सच है। धन में जोड़ने से ज्यादा तोड़ने की शक्ति है । खासकर रिश्तों को । धन की ताकत बड़े बड़ों को नचा रही है कनिष्ठिका पर ।

    एक वर्ष पूरा करने के उपलक्ष्य में ढेरों बधाई । आपकी ख़ुशी में हम पूरे दिल के साथ शामिल हैं।

    .

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  13. सुन्दर रचना

    कुछ परिवर्तन लाना है गर हमको
    शुरुआत हमीं को करनी है

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  14. रचना बहुत गहरा प्रभाव छोड़ती है तिवारी जी ... सार्थक रचना के लिए बधाई स्वीकारें ..

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  15. ब्लाग की सालगिरह पर बधाई

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  16. Thanks to all participants for kind visit and valuable comments.

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