क्या है - 'काल'?
घडी की माप?
पल - विपल...,
गणना या चाप?
जब घडी नहीं थी
घड़ीसाज नहीं था,
नहीं था कैलेण्डर
कोई पञ्चांग नहीं था.
जब नहीं थी नदी,
और पर्वत नहीं था.
पृथ्वी, पवन, आकाश
कुछ भी नहीं था.
सोचो तब भी -
क्या काल विद्यमान
नहीं था.....?
भूत, वर्तमान
और भविष्यत
यह तो दृश्य हैं,
काल खण्ड हैं.
काल तो है -
इन सबका द्रष्टा.
काल ही है -
इन सबका स्रष्टा.
सबसे अलग और
सम्मिलित सब में,
अमूर्त रूप वह
सर्व अखंड है.
भक्तों के हित
मूर्तरूप में
वही स्थापित
विग्रहरूप सपिंड है.
कहलो समय या
'महाकाल' उसे,
वह युग्मरूप
शिवलिंग है.
आद. तिवारी जी,
ReplyDeleteकाल की इतनी गहन व्याख्या और वह भी इतनी सुन्दर !
आपकी अभिव्यक्ति ने तो निशब्द कर दिया !
शिवरात्रि की पूर्व संध्या पर इससे सुन्दर कविता और क्या हो सकती है !
आभार
सच में इतनी गहन व्याख्या काल का काल से महाकाल तक, कहीं नहीं पढा था, कभी नहीं पढा था। अद्भुत।
ReplyDeleteआपको भी महाशिवरात्रि की मंगल कामनाएं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर पोस्ट...
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की शुभकामनाएं...
शिवरात्रि पर शिव की अद्भुत व्याख्या...
ReplyDeleteगुरुदेव आप धन्य है....
सार्थक पोस्ट .....आभार
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की शुभकामनाएं...
काल व महाकाल की सटीक व्याख्या इतने सरल और भाव युक्त शब्दों में पढ़ने का सुअवसर मिला ! आभार!
ReplyDeleteप्रणाम,
ReplyDeleteकाल को समझने का अवसर आज आपने प्रदान किया है उसके लिए सादर आभार |
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महाशिवरात्रि की आपको सपरिवार शुभकामनायें !!
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काल का पहिया तो युगों से घूम रहा है ।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ।
बहुत सुन्दर रचना। बधाई।
ReplyDeleteआपकी अभिव्यक्ति ने तो निशब्द कर दिया| धन्यवाद|
ReplyDeleteThanks to all participants for kind visit and valuable comments.
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