Wednesday, October 20, 2010

अनुभूति के सप्त सोपान

मित्रों!
इ-मेल पर 'लौटा हू अन्तरिक्ष से आज' पर कई प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुयी है. कुछ ने संकेत से तो कुछ्ने सीधे ही कहा है - 'अरे भाई गए भी थे या हांक रहे हो'. गए थे तो स्टेसनो के नाम, रंग -रूप अनुभूति बताओ. प्रश्न उपेक्षणीय नहीं था, यद्यपि मै जानता हूँ यह स्नेह ही है, व्यंग्यात्मक पुट लिए तथापि ये प्रतिक्रियाएं गल्प हों या हास्य हो, उपहास हो, हास्य हो या कटाक्ष हो, ..एक प्रश्न तो है ही .. और जब प्रश्न है तो उत्तर भी आना ही चाहिए...इसलिए देर से ही सही जो स्थिति थी उसे बांटना चाहता हूँ आप सभी के साथ...और उनका बहुत बहुत आभार जिनके प्रश्न और जिज्ञासा ने यह सृजन कराया....


अनुभूति के सप्त सोपान


हाँ यह सच है भाई !
गया था वहाँ लेकर तीर - कमान
तर्क - वितर्क - निरा अभिमान.
मै हूँ स्वयं और मेरे संग
कठोपनिषद सा है - 'नचिकेता'.
लेकिन जाने कहाँ खो गया?
'मन का मान' प्रिय वह प्रचेता.
जाने कहा खो गयी - 'वह भी',
था जिस पर मुझको बहुत गुमान
गार्गी, भारती, सावित्री, सत्यवान.

'मैं' छूटा, 'मै-पन' भी छूटा
छूटा सब अपनापन भी.
खो गए स्नेह- सत्कार- घृणा,
खोया ये दीपक - आरती भी.
दूजे पर तो नाम भूल गया
रही शेष ..'हूँ' ...की स्मृति.
तीजे पर वह भी गयी
खो गयी सारी ...विकृति...

चौथे पर लिंग भेद खो गया
अहं - इदं का भेद भी गया.
जो अब है केवल 'वह' है.
यह प्रतिरूप उसी 'वह' का है.
पांचवे पर यह 'है' भी गया.
बचा रहा अब केवल - 'वह'.

परन्तु 'वह' कौन वह?
लिंग भेद से परे एक ज्योति.
जहा अहं-इदं-त्वम् का लोप.
केवलं - केवलं - इदं केवलं.
जो है - 'त्वं स्त्री', 'त्वं पूमां'..
ना स्त्री, और ना पूमान.
'अर्द्ध- नारीश्वरम' केवलम
सत्यम केवलं शक्ति केवलं,
शिवं केवलं, ....शुभं केवलं

मिटा छठे पर शिव-शक्ति युग्म
वह अलिंगी अर्द्धनारीश्वरम भी.
अब बचा है केवल- आनन्दम ...
मधुरं - मधुरं - आनन्दम....
सातवे पर यह 'आनंद' भी मिटा
अब केवलं केवलं 'महाशून्यम'
'महाशून्यम' .. .'महाशून्यम'.
अबतक तो था 'अस्ति' को जाना,
जाना अब अंतिम 'नास्ति' भी .

लौटा कैसे? मै नहीं जानता
लौटी तंद्रा, मै तो मंदिर में था.
था माँ के दरबार में.शंख - घंटा -
घडियाल - जयकारा की नाद में, ..
सामने दीपक -धूप जल रहा था
मै तो दुर्गा सप्तसती पढ़ रहा था..

5 comments:

  1. कमाल कर दिया……………तत्व दर्शन करा दिया ………………यही तो वो अनुभूति है जिसके लिये इंसान भटकता फ़िरता है उम्र भर या कहिये जनम जनम मगर ये अनुभुति भी नही होती………………ये रचना तो अपने आप मे पूर्ण है इसके बाद कहने को कुछ बचता ही नही।

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  2. वाह अनुभूति की कितनी सुन्दर यात्रा,जिसमें अपने आप को कुछ पल के लिए बिलकुल भूल गए..आभार

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  3. ये ध्यान की बाते हैं। जो उसमे गया है,वही उसका मर्म जानता है।

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  4. सुंदर अनुभति की यात्रा से परिचय करवाया.

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  5. Thanks to all participant for visit and useful comments. Regards

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