अपनी सुदूर .......यात्रा से
वापस लौट आया हूँ आज..
अब कल्यारार्थ खोलता हूँ -
उस अनूभूति, शास्त्रार्थ का -
कुछ गूढ़ - रहस्य, कुछ राज.
गया था सगर्व - साभिमान
करने शास्त्रार्थ, मांगने बरदान
परन्तु ..वहाँ भूल गया सबकुछ,
खो गयी बुद्धि - विवेक - चातुर्य.
रह गया मौन, बस मौन...निर्वात ..
खो गयी सब मन की स्रिष्टि....,
कर न सका कुछ प्रश्न,,,,,
वाणी हो गयी एकदम मौन.
सारे भेद खो गए वहीँ पर
बचा ही नहीं कोई - प्रश्न.
सब कुछ वहाँ तो है - अभेद.
बची केवल और केवल अंतर्दृष्टि
.'पुरुष' वह है - 'परम चैतन्य'
वह तो है - 'एक अनन्य'.
जिसका न आदि है न अन्त.
वही है पतझड़, वही बसंत.
वही है 'शून्य', वही -'अनंत'.
ज्ञान का वह - परमधाम
चेतना का वह परम आगार,
किन्तु यह 'पुरुष' भी है -
'प्रकृति' भी, अलिंगी है,
अभेद, अर्द्ध- नारीश्वर..
गूंगा ज्ञान है भक्ति बिना और
परिचय नहीं उसका कर्म बिना.
देखा नहीं है - भेद वहाँ कोई,
उच्चतम शिखर, निम्नतम खाई में.
अनंत और शून्य में, जड़ - चेतन में.
कर्म - ज्ञान - भक्ति और योग में...
नहीं है कोई भेद वहाँ योगी की
समाधि और भक्त की अनुरक्ति में.
कलमा और मन्त्र की शक्ति में...,
गीता - पुराण और कुरआन ...में.
मुक्ति - मोक्ष - कैवल्य - निर्वाण में,
बका और फ़ना की अंतिम स्थिति में.
ज्ञान - कर्म - योग और भक्ति का
समुच्चय ही है - 'वह दिव्य विन्दु' .
जो है - अंततः सभी का एक मात्र
गंतव्य, मंतव्य और अंतिम प्राप्तव्य.
.
साधन के दौरान हुई अनुभूतियों का सुंदर चित्रण आपने किया है. दर्शन के साथ गुँथे भाव अच्छे लगे.
ReplyDeleteThanks sir for visit and comments
ReplyDeleteनहीं है कोई भेद वहाँ योगी की
ReplyDeleteसमाधि और भक्त की अनुरक्ति में.
कलमा और मन्त्र की शक्ति में...,
गीता - पुराण और कुरआन ...में.
मुक्ति - मोक्ष - कैवल्य - निर्वाण में,
बका और फ़ना की अंतिम स्थिति में.
" वाह! क्या सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति है ......गहरी सोच और सत्य का चित्रण..."
regards
मेरे अंतस मे तेरे सौरभा की रजत किरणो का आभास कैसी है अनुभूति कैसा है आभास। बहुत सुन्म्दर रचना है। बधाई।
ReplyDelete5/10
ReplyDeleteसुन्दर अध्यात्मिक प्रवाह
एक बार आत्मावलोकन होने के बाद कुछ नही बचता ………………बेहद सटीक चित्रण किया है………………तू और मै का भेद वहाँ मिट जाता है और फिर असीम आनन्द ही आनन्द बचता है।
ReplyDeleteaatma aur parmatma ki ananyta anubhuti ke dharatal par sundarta se abhivyakt hui hai!
ReplyDeleteregards,
नहीं है कोई भेद वहाँ योगी की
ReplyDeleteसमाधि और भक्त की अनुरक्ति में.
कलमा और मन्त्र की शक्ति में...,
गीता - पुराण और कुरआन ...में.
-एक अनूठा स्पंदन!! बहुत सुन्दर!
All respected visitors
ReplyDeleteSaadar Pranaam !!
Many - many thanks to all leaned participants for visiting and more valuable comments. Your suggestions & evaluations are my creative energy.
Regaards to all.
सुंदर रचना है बधाई।
ReplyDeleteVevek Bhaai!
ReplyDeleteA warm welcome on my blog & many thanks for visit and comments. Again thanks dear..
Regards..