आखिर
बड़ा है कौन?
जल की एक बूँद
या गहरा समुद्र?
यह प्रश्न
मथ रहा है
सदियों से,
संवेदनशील
मनीषा को.
उसकी संवेदना
उसकी प्रज्ञा को.
चिन्तक वैज्ञानिक
और फ़रिश्ता को.
यह प्रश्न
जितना छोटा
जितना सरल
दीख रहा है,
है उतना ही
जटिल और गूढ़.
बड़े-बड़े विद्वान्
और ऋषि मनीषी भी
बन गए हैं यहाँ मूढ़.
जिसने भी
इस ज्ञान गंगा में
गोटा लगाया;
उनके हाथ लगा
कुछ सीपी - शंख
कुछ मोती भी.
परन्तु बहुतो ने
अपनी मुट्ठी बंद
और रीता ही पाया.
आखिर
क्यों होता है ऐसा?
यह प्रश्न क्यों नहीं है
और प्रश्नों जैसा?
क्योकि प्यारे!
यहाँ गंगा उलटी
भी बहती है.
वह बूँद
जिससे अनवरत
भरा- भरा रहता
है यह - समुद्र.
ऊपर आसमान
और अन्तरिक्ष
तक जाती है.
समुद्र की ही नहीं
आकाश की भी
तृषा मिटती है.
उसकी प्यास
बुझाती है.
यहाँ
उलझन और
भी बढ़ जाता है
जब यह अथाह
सागर एक
दिन उसी
एक बूँद में
पूरा का पूरा
समां जाता है.
बहुत गहन चिंतन ...पर मेरी समझ से बूंद ही बड़ी होती है ....यदि बूंद न हो तो सागर का अस्तित्व कैसे बनेगा ?
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
गज़ब की गहरी सोच का परिचायक है ये कविता………………बूँद और सागर के माध्यम से जिस गहराई मे आपने उतर कर लिखी है कविता वो हमे अध्यात्म के भी दर्शन करा देती है………………वैसे भी कहा गया है………एक नूर से सब जग उपजा……………तो उस संदर्भ मे भी सटीक बैठती है।
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 5-10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
ReplyDeleteकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
जीवन दर्शन और गहरी बात
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/2010/10/19-297.html
ReplyDeleteयहाँ भी आयें .
संगीता जी,
ReplyDeleteसादर नमस्कार!
हमेशा की तरह बहुत शानदार चर्चा ...
अच्छे लिंक्स ...सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा। ढेर सारे ऐसे लिंक मिले जहां तक जाना नहीं हुआ था। अब जाऊंगा। इसमें आपकी मेहनत और चयन कौशल परिलक्षित है। हमारे ब्लॉग शामिल कर हमारा मनोबल बढाने के लिए आभार।
Vandana ji
ReplyDeleteBahut - bahut aabhar. aapki tippani hameshaa hi saargarbhit hoti hai. manobal badhati hai.
गजब के चिंतन में डुबो बहुत अच्छी सशक्त रचना का सृजन किया है.
ReplyDeleteबधाई.
एक गंभीर सवाल उठाया है आपने . वैसे बूँद-बूँद से घट भरता है और सागर भी बूंदों से ही महासागर बनता है.इसलिए मुझे लगता है कि बूँद बड़ी है सागर से. फिर भी यह दार्शनिक प्रश्न सोचने को मजबूर तो करता ही है. चिंतन-मनन के लिए एक सार्थक कविता है यह. आभार .
ReplyDeleteउम्दा दर्शन...वाह!
ReplyDeleteगहरा प्रश्न है ... बूँद बूँद से सागर बना ... या सागर ने बूँदों को आज़ाद किया ....
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