आसमान में
उड़ने की ललक
परिंदों सा व्योम में
छा जाने की अन्यतम
जिजीविषा उत्साह
और उन्मुक्त साहस
दिखाया तो बहुतों ने.
परन्तु
कौन उड़ सका है
खुले आसमान में,
बिना पंख के?
और आज का पंख
आपकी अपनी
असीम अर्जित
पवित्र योग्यता
और कौशल नहीं,
इन भू-सुरों का
कृपा पात्र होना है.
बिना इस कृपा
के उड़ना तो दूर.
धरती पर भी नहीं
दौड़ सकते आप?
नहीं लगा सकते
इच्छित कल्पित
उन्मुक्त कुलांच.
बिछा दी जाएँगी
राहों में दाने
क़ाली- पीली सरसों के,
और कहा जाएगा -
गर्व मिश्रित स्नेह से.
हम तो उतार रहें हैं
नज़र, अपने प्यारे
सलोने लाडले का.
देश के होनहार सपूत,
राष्ट्र के उज्ज्वल और
स्वर्णिम भविष्य का.
परन्तु
ReplyDeleteकौन उड़ सका है
खुले आसमान में,
बिना पंख के?
और आज का पंख
आपकी अपनी
असीम अर्जित
पवित्र योग्यता
और कौशल नहीं,
इन भू-सुरों का
कृपा पात्र होना है.
.....chamchagiri ka bahut vehtar dhang se pl kholi hai aapne...bahut sundar rachna.
और आज का पंख
ReplyDeleteआपकी अपनी
असीम अर्जित
पवित्र योग्यता
और कौशल नहीं,
इन भू-सुरों का
कृपा पात्र होना है.
कडवी सच्चाई कह दी है।
और आज का पंख
ReplyDeleteआपकी अपनी
असीम अर्जित
पवित्र योग्यता
और कौशल नहीं,
इन भू-सुरों का
कृपा पात्र होना है.
बस आज का सच यही है। मगर आने वाली पीढियाँ हमसे जरूर इसका जवाब माँगेंगी। धन्यवाद इस सुन्दर सटीक रचना के लिये।
कृ्प्या इस ब्लाग को भी देखें
http://veeranchalgatha.blogspot.com/
संगीता जी,
ReplyDeleteसादर नमस्कार!
हमेशा की तरह बहुत शानदार चर्चा ...
अच्छे लिंक्स ...सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा। ढेर सारे ऐसे लिंक मिले जहां तक जाना नहीं हुआ था। अब जाऊंगा। इसमें आपकी मेहनत और चयन कौशल परिलक्षित है। हमारे ब्लॉग शामिल कर हमारा मनोबल बढाने के लिए आभार।
वंदना जी
ReplyDeleteसच कहूँ तो इस रचना का सारा श्रेय आपको है. अभी कुछ दिनों पूर्व आपकी कविता - आसमान में उड़ने के सम्बन्ध में आयी थी --- मुझे कोई रोके नहीं कोई टोके नहीं मै जाना चाहती हू आसमान के पार ....ऐसी सीही कुछ भाव लिए हुए थी. उसी भाव को पढकर प्रतिक्रिया स्वरुप यह रचना आयी है . यह आप को ही समर्पित है.
तिवारी जी,
ReplyDeleteमै इस काबिल कहाँ ……………ये तो आपकी काबिलियत है…………आप सच मे बेहद गहन और उम्दा लिखते हैं जो सीधे दिल पर चोट करती है।
हार्दिक धन्यवाद्।
Arvind bhai
ReplyDeleteKabhi kanhi kahan kho jaate hain aap? Thanks for creative comments.
Arvind ji!
ReplyDeleteThanks for creative comments
और आज का पंख
ReplyDeleteआपकी अपनी
असीम अर्जित
पवित्र योग्यता
और कौशल नहीं,
इन भू-सुरों का
कृपा पात्र होना है.....
बहुत ही कडवा सच इतनी सहजता से व्यक्त किया है आपने...आज अपनी योग्यता से कितने बढ़ पाते हैं आगे और उनकी राह में कितने रोड़े बिछा दिए जाते हैं...बहुत सटीक टिप्पणी आज के हालात पर...आभार
भाई शर्मा जी !
ReplyDeleteमै अपने को भाग्यशाली मानता हूँ जो आप लगभग मेरी प्रत्येक रचनाओं में बहुत ही सटीक टिप्पणी देकर मेरा उत्साह बढाते है. आप की समीक्षाओं ने सतत मार्गदर्शन का कार्य किया है, एक नवीन ऊर्जा का संचार किया है. आशा है आगे भी अनुग्रहित करते रहेंगे. आभार और पधारने का धन्वाद.
शर्मा जी
ReplyDeleteपाता नहीं क्यों आपके ब्लॉग पर टिप्पणी प्रेषित नहीं हो पारही है. मंदिर प्रकरण पर अपनी सारगर्भि रचना के लिए ढेर सारी बधैया और साधुवाद एक साथ स्वीकारकरें.
और आज का पंख
ReplyDeleteआपकी अपनी
असीम अर्जित
पवित्र योग्यता
और कौशल नहीं
इन भू-सुरों का
कृपा पात्र होना है।
वाह..क्या जोर दार लिखा हे आपनक।
भू-सुरों शब्द का व्यंग्यात्मक प्रयोग एकदम सार्थक है।
Bhai Mahendra ji
ReplyDeleteThanks for creative comments. Aabhar.