Monday, July 26, 2010

सृजन: 'सत्प्रवृत्तियों का'

कहता था और
कहता रहूँगा,
लिखता था और
लिखता रहूँगा कि -
सत्प्रवृत्तियों पर
आवरण का,
जो गहन-गंभीर
अँधेरा पड़ा है,
उसे हटाना है - ' केवल '.
इस अँधेरे को हटाना
और मिटाना ही है :
सृजन - ' सत्प्रवृत्तियों का '.


सत्प्रवृत्तियों में -
श्रम नहीं उल्लास है,
आंतरिक उच्छ्वास है;
दुष्प्रवृत्तियों में थकान,
और जीवन का ह्रास है.
दुष्प्रवृत्तियों में व्यथा श्रम,
और सामाजिक उपहास है.


जानते है हम भी,
आप भी और सभी;
लेकिन डरते क्यों हैं
इस अँधेरे से....?
जानते है हम भी,
आप भी और सभी;
तिमिर यहाँ स्थाई नहीं.
इसे तो मिट जाना ही है,
राह लो थोड़ी देर और ,
उषा को सुबह में आना ही है.


लेकिन करें क्यों इन्तजार,
हम प्राची का ?
हम हैं मानव जलाएंगे दीप,
यह हाथ नहीं है याची का.
गर हम सभी मिलकर ,
दीवाली सा दीप जलाएंगे,
क्या यह अँधेरा और तिमिर,
धारा पर टिक पाएंगे ?

सृजन नहीं कर सकते?
चलो कोई बात नहीं.
मंदिर-मस्जिद नहीं जा सकते,
अब भी कोई बात नहीं.
अपने चौकठ पर,
दीप जला तो सकते हो,
अपने घर के अँधेरे को,
भगा तो सकते हो,
नहीं जानते तुम,
यह एक दीप नहीं,
प्रवृत्ति है.
बन जाये आदत,
यही सत्प्रवृत्ति है.

6 comments:

  1. मूल मंत्र..

    यह एक दीप नहीं,
    प्रवृत्ति है.

    ...वाह, क्या बात है..!

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  2. सत्प्रवृत्तियों पर
    आवरण का,
    जो गहन-गंभीर
    अँधेरा पड़ा है,
    उसे हटाना है - ' केवल '.
    इस अँधेरे को हटाना
    और मिटाना ही है :
    सृजन - ' सत्प्रवृत्तियों का '.

    वाह्………………क्या बात कही है…………बस अगर मानव इतनी ही कोशिश कर ले तो जीवन जीने के अर्थ ही बदल जायें।

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  3. देवेन्द्र जी और वंदना जी,
    वस्तुतः प्रवृत्ति एक जैविक गुण है, प्रत्येक जीव में विद्यमान है. उपयोग और उपभोग ही उसे सत्प्रवृत्ति औत कुप्रवृत्ति में बदल देते हैं. यदि वह लोकमंगलकारी है तो सत्प्रवृत्ति है और केवल व्यतिगत है, सामाजिक ह्रास का कारण है तो कुवृत्ति है. आवश्यकता ज्ञान के दीप को जलाने की है, आवरण को हटाने की है. इसमें कोई कठिन बात नहीं है . इसे हम जानते और मानते तो हैं करते नहीं है, सोचते भी है, मजा तो तब है जब यह हमारे नित्य प्रणाली का अनिवार्य अंक बन जाय . यही कुछ्ह बाते मन में थी जो कलम के माध्यम से कागज पर और नेट पर आगयी.सुझावों के लिए धन्वाद.

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  4. गहरे भाव लिये हुये सुन्‍दर शब्‍द रचना, आभार ।


    मेरे ब्‍लाग पर आकर प्रोत्‍साहित करने का आभार ।

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  5. प्रणाम.............इस अद्वितीय लेख के लिए अशेष शुभकामनायें प्रेषित है स्वीकार कर कृतज्ञ करें !!

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  6. Sada ji aur Bhartiy ji
    Namaskar

    Thanks for visit and comments.Bhartiy ji margdarshan karte rahiyega. fir milenge is aasha ke saath punah Pranam ....

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