Thursday, May 27, 2010

समय क्या है?

समय क्या है?
काल का प्रवाह या
जिन्दगी का प्रश्नपत्र?
जिसमे करना पड़ता है
समाधान द्वंद्वों का.

जहाँ होता है: मंथन,
अनेकशः किन्तु - परन्तु,
तर्कों - कुतर्कों पर.
यहाँ परीक्षक और पर्क्षार्थी तो
व्यक्ति स्वयं है, परन्तु,
प्रश्नपत्र?
क्या वह भी उसी की
गतिविधियों का प्रतिफल नहीं है?


समय तो
काल खण्ड के रूप में
प्रदान करता है,
मात्र एक अवसर.
मंथन एवं समाधान का.


सुविधा के लिए
जिसे हमने बाँट दिया है
टुकड़ों में.
भूत की पश्चाताप,
वर्तमान की निराशा और
भविष्यत की परिकल्पना,
निरा स्वप्न, एक आशा में.

जिसे हम भूत कहते है,
वह क्या है?
एक दर्पण - जिसमे,
भोगे गए क्षणों को,
अपने ही धब्बों को,
देखा जा सकता है.

और वर्तमान?
उन धब्बों को मिटाने का,
एक अवसर.
क्रियान्वयन की योजना,
शान्ति की आशा.


भूत की सीढ़ी दोना
शायद उचित नहीं,
परन्तु भूत का तिरस्कार,
क्या उचित होगा?
भूत के अवसाद - विषद में ही,
क्या गुम्फित नहीं है,
भविष्य का सुखद परिष्कार?


भविष्यत क्या है?
औचित्य के प्रश्न का
सम्यक समाधान.
एक स्वप्न, एक आशा,
एक संबल, एक प्रत्याशा.

3 comments:

  1. यहाँ परीक्षक और पर्क्षार्थी तो
    व्यक्ति स्वयं है, परन्तु,
    प्रश्नपत्र?
    क्या वह भी उसी की
    गतिविधियों का प्रतिफल नहीं है?

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...सरथ और सटीक प्रश्न ....

    वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें...टिप्पणी देने में सरलता हो जायेगी

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  2. अतीत की वस्तुगत आलोचना, वर्तमान को समझने और फिर बदलने में हमारी राह प्रशस्त करती है, ताकि एक बेहतर भविष्य की नींव रखी जा सके।

    कविता मे है सटीकता के साथ ड़ाली गई अंतर्दृष्टि।

    शुक्रिया।

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  3. यह आप ही जैसे उर्जस्वी और संवेदनशीलों के मन की भाषा है, और आप को है समर्पित है-. 'तेरा तुझको अर्पण'.

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