जीवन सुख दुख का मिश्रण
खट्टा - मीठा एक घोल सा
सरल- शांत - घट - मोम सा॰
हमी बनाए गरल हैं, इसको
यह जल है, मेघ है, व्योम सा.
खोलना चाहोगे, खुल जाऊंगा
परत - परत भी मैं हो जाऊंगा
चाल चलोगे लेकिन कोई यदि
अभेद्य दुर्ग सा बन जाऊंगा।
सरल नहीं, गरल ही समझो
गूढ रहस्य एक बन जाऊंगा ।
खट्टा - मीठा एक घोल सा
सरल- शांत - घट - मोम सा॰
हमी बनाए गरल हैं, इसको
यह जल है, मेघ है, व्योम सा.
खोलना चाहोगे, खुल जाऊंगा
परत - परत भी मैं हो जाऊंगा
चाल चलोगे लेकिन कोई यदि
अभेद्य दुर्ग सा बन जाऊंगा।
सरल नहीं, गरल ही समझो
गूढ रहस्य एक बन जाऊंगा ।
माना तुम सबल, बुद्धिमान हो
फिर भी मैं हाथ नहीं आऊँगा
कभी भी साथ नहीं आउंग,
बन के पवन बहता ही रहूँगा
लेकिन सूनी होगी मुट्ठी तेरी,
न मिश्रण हूँ मैं, न यौगिक हूँ
विशुद्ध तत्व मैं बन जाऊंगा
भारहीन, रूप रंगहीन मैं
विस्तृत व्यापक हूँ ऊर्जा सा,
मेरी ही शक्ति दमकते हो तुम
मैं हूँ 'सांत', मैं ही 'अनंत सा'॥
फिर भी मैं हाथ नहीं आऊँगा
कभी भी साथ नहीं आउंग,
बन के पवन बहता ही रहूँगा
लेकिन सूनी होगी मुट्ठी तेरी,
न मिश्रण हूँ मैं, न यौगिक हूँ
विशुद्ध तत्व मैं बन जाऊंगा
भारहीन, रूप रंगहीन मैं
विस्तृत व्यापक हूँ ऊर्जा सा,
मेरी ही शक्ति दमकते हो तुम
मैं हूँ 'सांत', मैं ही 'अनंत सा'॥
डॉ जयप्रकाश तिवारी
सबकुछ समाया है अपने अंदर बस देखना होता है खुद को
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
जीवन के मर्म का सुंदर वर्णन
ReplyDeleteआभार सहित धन्यवाद
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