हाँ, कविताओं को मैं पढ़ता हूँ
और कविता भी मैं लिखता हूँ
कवि की चाह, पढें सब कविता
डरता हूँ, कविता पढे न कविता,
ठन जाएगी, कविता-कविता में
मैं कहाँ संभाल पाऊँगा कविता
कविता - कविता के इस द्वन्द्व में
पिस जायेगी बेचारी मेरी कविता।
नहीं खोना चाहता कविता को
इसलिए संभालता हूँ कविता
चलो यह एक अच्छी बात हुई
भा गयी, कविता को कविता,
इसलिए संभालता हूँ कविता
चलो यह एक अच्छी बात हुई
भा गयी, कविता को कविता,
अरे अब पिसने की बारी, मेरी है
बच पायेगी नहीं अन्तः कविता
अरे कविता को कौन बचाएगा
लिखने लगी कविता, कविता।
पाला जिस कविता को मैंने
आँसू अपना पिला - पिलाकर
कविता ने उसे बाजार दे दिया
हँस - हँसकर, खिल खिलाकर,
आँसू अपना पिला - पिलाकर
कविता ने उसे बाजार दे दिया
हँस - हँसकर, खिल खिलाकर,
कविता को कविता लिखने का
किसने यह अधिकार दे दिया?
कविता मेरी, दयाकर मुझपर
तूने जिंदा कवि को मार दिया।
पहुंचा संदेश जब छापाखाना
कुछ अर्थी को लेकर आ गए
कुछ लगे तलासने मेज मेरा
कुछ डायरी लेकर भाग गए ,
कुछ अर्थी को लेकर आ गए
कुछ लगे तलासने मेज मेरा
कुछ डायरी लेकर भाग गए ,
अभी मरा नहीं, मैं जिंदा हूँ
कविता-कविता रटता ही रहा
कविता ने मारा, कविता से
कविता-कविता कह रोता रहा
कविता छापने के बदले मे
प्रकाशक ने थोपी थी कविता
ला, अब ला, तू मेरी कविता
ले जा, अपनी प्यारी कविता,
प्रकाशक ने थोपी थी कविता
ला, अब ला, तू मेरी कविता
ले जा, अपनी प्यारी कविता,
नहीं जाऊंगा, प्रकाशक पास
क्या छोड़ दूँ , लिखना कविता?
नहीं, छोड़ नहीं सकता लिखना
लिखुंगा स्वांतः सुखाय कविता॥
- जयप्रकाश तिवारी
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-01-2017) को "है सूरज भयभीत" (चर्चा अंक-2864) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आपका
ReplyDeleteबहुत ही आभार...।
ReplyDeleteआभार
Deleteसुंदर रचना । कवि की मार्मिक अभिव्यक्ति । सादर-
ReplyDeleteआभार
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