लिखे शब्द कुछ, जब भी मैंने
शब्दों मे तेरी ही छ्वि पायी
ढले अर्थ मे, शब्द वे जब भी
मूरत तेरी ही, सामने आयी,
शब्द, अर्थ चाहे जीतने सुंदर
उन सबको ही आभूषण पाया
शास्त्रीय शब्द हैं शील तुम्हारे
देशज मे भाव - भंगिमा पाया।
उमड़ी जब भाव शब्द की बदली
लगा, यह केश तुमने लहराया
कौंधी जब उसमे, दमक दामिनी
यह लगा मुझे, तूने पास बुलाया,
तुम छंद बद्ध, तुम छंद मुक्त हो
नित नित नूतन औ उन्मुक्त हो
सोच रहा, छोड़ दूँ लिखना कविता
तुमसे श्रेष्ठतर कौन सी कविता?
डॉ जयप्रकाश तिवारी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (13-07-2017) को "पाप पुराने धोता चल" (चर्चा अंक-2665) (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Abhar sir ji
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