कर दिया हमें
जिसने उद्वेलित
वह कहानी
किसने गढ़ी है?
बात इतनी नहीं कि
द्रुपदसुता सभा मे
बेइज्जत हुयी है,
चलती सड़क पर,
ट्रेन, बस, टेम्पो मे भी
उसकी यही गति है।
जिसने उद्वेलित
वह कहानी
किसने गढ़ी है?
बात इतनी नहीं कि
द्रुपदसुता सभा मे
बेइज्जत हुयी है,
चलती सड़क पर,
ट्रेन, बस, टेम्पो मे भी
उसकी यही गति है।
बदलते समय मे
अब तक खतरे मे
बेचारी 'कन्या भ्रूण',
खतरा यह रूप एक
घिनौना लेने लगा है,
छोटी बच्चियाँ भी
नहीं है सुरक्षित,
इन मनोरोगियों से
करनी है उन्हे संरक्षित।
अब तक खतरे मे
बेचारी 'कन्या भ्रूण',
खतरा यह रूप एक
घिनौना लेने लगा है,
छोटी बच्चियाँ भी
नहीं है सुरक्षित,
इन मनोरोगियों से
करनी है उन्हे संरक्षित।
क्या- क्या कहानी
तुम्हें हम सुनाएँ
रो दोगे तुम,
क्यों तुमको रुलाएँ?
समस्या जो आई
मिटाएँगे उसको,
आएगी जो बाधा
अब हटाएँगे उसको।
यहाँ बिखरी पड़ी
सिसकती वेदनायेँ
उपेक्षित पड़ी हैं
हजारों ऋचायेँ,
भूगोल बनकर
दफन हो गयी हैं
कफन ओढ़कर
असमय सो गयी हैं।
सिसकती वेदनायेँ
उपेक्षित पड़ी हैं
हजारों ऋचायेँ,
भूगोल बनकर
दफन हो गयी हैं
कफन ओढ़कर
असमय सो गयी हैं।
कवि की कलम
जब कफन को उठाती
तब कविता, कहानी
नई जग मे आती,
समस्याओं का हल भी
वही तो सुझाती।
न रोके कोई
इस कलम की राह
शत बार पढ़ो
क्या कलाम की चाह?
इस कलम की राह
शत बार पढ़ो
क्या कलाम की चाह?
डॉ जयप्रकाश तिवारी
दिनांक 27/06/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
बहुत सुंदर रचना आपकी।
ReplyDeleteउत्कृष्ट सामयिक रचना।।
ReplyDeleteसारगर्भित रचना।
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर...