Monday, January 12, 2015

इस ग़ज़ल ने कहा

इस ग़ज़ल ने कहा था जिंदगी गुनगुनाकर देखिये 
जिंदगी संवर जायेगी, प्यार के सुमन खिल जाएंगे 

तब से रोज गुनगुना रहा हूँ, उँगलियों को जल रहा हूँ 
पूछती है बीबी क्या कर रहे हो?बताते हुए शर्मा रहा हूँ 

लो आ गयी किचन में, बोली वाह! कितने अच्छे हो 
मेरे नहाने के लिए पानी अभी से ही गुनगुना रहे हो 

सचमुच इस ग़ज़ल ने तो प्यार करना ही सीखा दिया 
अब रोज गुनगुनाता हूँ, पानी के साथ चाय भी गर्माता हूँ 

थैंक्स तूने जिंदगी सवार दी, मीठी छुरी सीने में उतार दी 
ग़ज़ल मुस्कुराई हौले से मेरा हाथ दबाई, और पूछ ही बैठी 

न जाने लोग गज़लें क्यों ढूंढते हैं शायरी की किताबों में?
मैं तो उनके अंतर में बसती, देखते ही नहीं अंदरखाने मे.  

                                     डॉ जयप्रकाश तिवारी 

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