इस ग़ज़ल ने कहा था जिंदगी गुनगुनाकर देखिये
जिंदगी संवर जायेगी, प्यार के सुमन खिल जाएंगे
तब से रोज गुनगुना रहा हूँ, उँगलियों को जल रहा हूँ
पूछती है बीबी क्या कर रहे हो?बताते हुए शर्मा रहा हूँ
लो आ गयी किचन में, बोली वाह! कितने अच्छे हो
मेरे नहाने के लिए पानी अभी से ही गुनगुना रहे हो
सचमुच इस ग़ज़ल ने तो प्यार करना ही सीखा दिया
अब रोज गुनगुनाता हूँ, पानी के साथ चाय भी गर्माता हूँ
थैंक्स तूने जिंदगी सवार दी, मीठी छुरी सीने में उतार दी
ग़ज़ल मुस्कुराई हौले से मेरा हाथ दबाई, और पूछ ही बैठी
न जाने लोग गज़लें क्यों ढूंढते हैं शायरी की किताबों में?
मैं तो उनके अंतर में बसती, देखते ही नहीं अंदरखाने मे.
गजल भरा हो दिल,तो
ReplyDeleteआशिकी होती है—
जिंदगी से
Bahut bahut aabhar sir ji
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteThankss for writing
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