Wednesday, September 17, 2014

वर्ण से अभिव्यक्ति तक =================


वर्ण हैं लिपि का रेखा चित्र जो 
समाजशास्त्रीय चाक पर चढ़कर
अनुभवों अनुभूतियों की आंच में पककर
धारण करता है-  'शब्द का रूप'. 
शब्दों से काव्य शिल्पी अपने अंतर के 
चिंतन, स्फुरण, गुंजन और नर्तन को 
करता है मूर्तमान भाव सम्प्रेषण द्वारा। 
ये विपुलशब्द सम्प्रेक्ष्ण ही 
कहलाते हैं - 'काव्य और साहित्य'. 
शब्द यदि ज्यामितीय की भांति 
स्पष्ट और निर्भ्रांत है तो 
मूर्ति की भांति रहस्य्मयी और गूढ़तर भी. 
साहित्य की सम्यक समझ के लिए 
करना पड़ता है -'शब्दार्थों का  संधान '. 
व्याख्याओं का विशिष्ट विधान. 
क्योंकि यही शब्द अन्य अर्थों से अलग 
नए परिप्रेक्ष्य में , नवीन अर्थ स्फुरण में भी
होते हैं दक्ष, सर्वदा समर्थ। 
ये कुलांचे भी मारते हैं -
कला से विज्ञान और प्रकृति तक 
विज्ञानं से नीरा लोक संस्कृति तक।  
  
डॉ  जयप्रकाश तिवारी 

No comments:

Post a Comment