हम टहला करते हैं
तालाब के किनारे
नदी के घाट पर
या सागर तट पर ,
तालाब का किनारा
संस्कृति की देन है
नदी का घाट संस्कृति ...
और प्रकृति की है साझी
तथा सागर तट है
विशुद्ध प्राकृतिक।
तालाब किनारे बैठते हैं
नदी किनारे टहलते है
सागर तट पर लेटते हैं
उसकी लहरों को देखतें हैं
उसके फेनों संग खेलते हैं
लेकिन वह तालाब …
जिसमे वर्तुल नहीं है
हम कंकड़ी फेंकते हैं
वर्तुल सृजित करते हैं ,
नदी देती है दोनों का मजा
तालाब का भी, सागर का भी।
नदी किनारे टहलते है
सागर तट पर लेटते हैं
उसकी लहरों को देखतें हैं
उसके फेनों संग खेलते हैं
लेकिन वह तालाब …
जिसमे वर्तुल नहीं है
हम कंकड़ी फेंकते हैं
वर्तुल सृजित करते हैं ,
नदी देती है दोनों का मजा
तालाब का भी, सागर का भी।
सागर नित रंग बदलता है
लालिमा, नीलिमा से कालिमा तक
वह मचाता है शोर, करता है गर्जन
सुनो, सुनो और मेरी सुनो मेरी बात !
लेकिन तालाब और नदी को
हम सुनाते है अपनी बात
हंसकर भी, गाकर भी, रोकर भी।
तालाब घर है, नदी परिवार है
और सागर है- संविधान सभा. ।
-डॉ जयप्रकाश तिवारी
लालिमा, नीलिमा से कालिमा तक
वह मचाता है शोर, करता है गर्जन
सुनो, सुनो और मेरी सुनो मेरी बात !
लेकिन तालाब और नदी को
हम सुनाते है अपनी बात
हंसकर भी, गाकर भी, रोकर भी।
तालाब घर है, नदी परिवार है
और सागर है- संविधान सभा. ।
-डॉ जयप्रकाश तिवारी
वाह ... क्या कल्पना है ... बहुत ही लाजवाब है रचना ... तालाब, नदी और सागर का रूप ...
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteBahut bahut aabhar aap sabhi ka
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