Monday, April 21, 2014

मैं जूझ रहा इन प्रश्नों से

कविता वस्तुतः है क्या?
वर्ण संयोजन, भावाभिव्यक्ति?
शब्दों का आपसी मेल या
इससे संप्रेषित भाव-शक्ति
या इन शब्दशक्तियों की
अपनी विशिष्ट अभिव्यक्ति?
साथ ही कविता सौंदर्य है?...

माधुर्य है? या कोई विचार?
अथवा विचारों का सौंदर्य?
और यह सौंदर्य – माधर्य भी
सर्जक का है या सृजित का?
काव्य का है या कवि का?
अथवा श्रोता और पाठक का?
सौंदर्य, सृजन-कला मे है या
पाठक-श्रोता की भावग्राह्यता मे?

यह काव्यात्मकता और माधुर्य
मन मे है या लेखन-प्रस्तुति मे?
कविता सामाजिक उत्प्रेरक है
या प्रगतिशीलता मे बाधक?
कविता बुद्धि विलास है या
सामाजिक नैतिक विकास?
कविता परिकल्पना है या
तथ्यात्मक कोई समन्वय?
आवश्यकता यह समाज की है
या संवेदी सृजनशील कवि की?
और यह ‘सर्वगत सुखाय’ है
या ‘एकांत स्वांतः सुखाय’?
यदि सर्वगत सुखाय है तो
क्या स्वांतः सुखाय दोष है?
स्वांतःसुखाय सार्वजनिक करके भी
क्या कोई कवि पूर्णतः निर्दोष है?

- डॉ॰ जयप्रकाश तिवरी

3 comments:

  1. अपने मन के भावों को अलंकृत करके कहना ... कभी कभी मंडित कर के कहना ...
    पर कविता वाही है जो दिल में उतर जाए ...

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  2. कविता को परिभाषित करना उतना ही कठिन है जितना सत्य को..

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