Saturday, March 22, 2014

चिंतकों से एक आग्रह


शब्द  शब्द  शब्द
अर्थ   अर्थ   अर्थ,
क्या कोई अंतर्संबंध है
शब्द  और अ र्थ  में?
हाँ, शब्द को जानते हैं
हम इसके निहितार्थ से.
शब्द की पहचान अर्थ से
शब्द की  मर्यादा अर्थ से
शब्द की  गरिमा  अर्थ से
शब्द की अस्मिता अर्थ से
तो क्यों बदलते जा रहे हैं
निहितार्थ  आज शब्द के?
क्यों खोते जा रहे  हैं  शब्द
अपनी भावनामयी मूल अर्थ?
शब्द गंभीर, अर्थ  पोपले
ऐसा क्यों हो  रहा अनर्थ?
जब दौलत की मंडी में
बिक  रहे  हों  दोनों  ही
क्षीणता क्यों हो रही इसमें?
शायद अब यह प्रश्न ही व्यर्थ.
लेकिन  प्रश्न  कोई  भी
नहीं होता कभी भी व्यर्थ
बना दिया  जाता  है  उसे
शक्ति / शासन बल से व्यर्थ
चिन्तक - लेखक को आज
इसी विन्दु  पर  सोचना  है
अर्थ को भटकने से रोकना है
जिससे न हो, कोई प्रश्न व्यर्थ
वह  चाहे  तो  कर  सकता  है
एक ही शब्द के विभिन्न अर्थ 
सार्थक गरिमामयी मूल्यपरक अर्थ.

     - डॉ. जयप्रकाश तिवारी 

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