सभ्यता और संस्कृति ही है
देश जाति की विशिष्ट पहचान.
सभ्यता है सतत परिवर्तन शील,
विज्ञान के संग - संग चलती है.
बदलते रहते हैं मानक इसके
जीवन के मूल्य बदलते इसके .
क्षेत्र इसका खान पान रहन सहन से
वेश भूषा - राजनीति - व्यवसाय तक.
वास्तुकला स्थापत्यकला माडर्नआर्ट
नाट्यमंच, चलचित्र से मीडिया तक.
लौकिक विकास भौतिक विकास ही
है मुख्य मापदंड, इस सभ्यता का.
वैभव - ऐश्वर्य सर्वोपरि इसमें
भावनाएं - संवेदनाएं घुटती हैं.
करने को अर्जित अधिक शक्ति
आपस में होड़ ये रखती है.
इस आपसी प्रत्द्वान्द्विता में
अंतर का कलुष बाहर आ जाता.
अपना गाल फुलाने खातिर
कमजोर राष्ट्र गप्प भी कर जाता.
उन्माद वर्गभेद- जाति भेद का
रह - रह कर यहाँ उभरता है.
कलह उपद्रव और संघर्ष का
वातावरण ही प्रायः रहता है.
है बैंक भरा और भरी तिजोरी
फिर भी सुख की नीद नहीं आती.
जीवन बीतता बड़ी बेचैनी में
क्षणभर भी शान्ति नहीं आती.
संस्कृति की इससे अलग बात
वह अकिंचन बनना है सिखलाती,
धन से इसको कोई बैर नहीं
त्यागमय भोग का पाठ पढाती.
होती आद्धृत यह तत्त्व ज्ञान पर
स्नेह - सौन्दर्य का रस बरसाती.
अंधकार से दिव्य प्रकाश का,
यह मृत्यु से अमरत्व तक का,
सुन्दर सुलभ मार्ग बतलाती.
संस्कृति नहीं वस्तु प्रदर्शन की
अपेक्षा है इसमें आत्म दर्शन की.
मानवता इसका अनिवार्य तत्त्व
सहयोग सद्भाव संतोष मूल तत्त्व.
इन्हीं मानकों पर आद्धृत संस्कृति
जो दृढ, उनमे आती नहीं विकृति.
छोड़ दिया जिसने अपनी संस्कृति
जा कर देखो, वहाँ कैसी विकृति?
अपेक्षा है इसमें आत्म दर्शन की.
मानवता इसका अनिवार्य तत्त्व
सहयोग सद्भाव संतोष मूल तत्त्व.
इन्हीं मानकों पर आद्धृत संस्कृति
जो दृढ, उनमे आती नहीं विकृति.
छोड़ दिया जिसने अपनी संस्कृति
जा कर देखो, वहाँ कैसी विकृति?
धर्म - अर्थ और काम - मोक्ष
हमारी संस्कृति का आधार है.
है अर्थ नहीं सर्वोपरि इसमें.
मोक्ष प्राप्ति यहाँ सर्वोपरि है.
विश्वबंधुत्व इस संस्कृति की देन
विश्व की अद्भुत एक धरोहर है.
रखनी है संभाल कर,यह धरोहर,
जगत कल्याणी है, यह धरोहर.
हमारी संस्कृति का आधार है.
है अर्थ नहीं सर्वोपरि इसमें.
मोक्ष प्राप्ति यहाँ सर्वोपरि है.
विश्वबंधुत्व इस संस्कृति की देन
विश्व की अद्भुत एक धरोहर है.
रखनी है संभाल कर,यह धरोहर,
जगत कल्याणी है, यह धरोहर.
सभ्यता है क्षैतिज विकास यदि
ऊर्ध्व विकास यह संस्कृति है.
हमें करनी प्रगति दोनों क्षेत्रों में
युक्ति युक्त सहचरी एक बन कर.
हम हैं अब भी आशावादी, सहभागी
इस सम्पूर्ण समन्वित विकास की.
परिस्थियां हों चाहे जितनी विकट
यहाँ फूटेगी किरण धवल प्रकाश की.
- डॉ. जयप्रकाश तिवारी
ऊर्ध्व विकास यह संस्कृति है.
हमें करनी प्रगति दोनों क्षेत्रों में
युक्ति युक्त सहचरी एक बन कर.
हम हैं अब भी आशावादी, सहभागी
इस सम्पूर्ण समन्वित विकास की.
परिस्थियां हों चाहे जितनी विकट
यहाँ फूटेगी किरण धवल प्रकाश की.
- डॉ. जयप्रकाश तिवारी
सभ्यता और संस्कृति ही हमारे देश की पहचान है .,,,
ReplyDeleteRECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना
जब संस्कृति ओर सभ्यताओं की बात हो तो आशावादी होना जरूरी है ... ओर हम भारतवासी तो वैसे भी बहुत आशावादी हैं ...
ReplyDeleteTHANKS
ReplyDelete