Thursday, March 7, 2013

अध्यात्म के मूल तत्त्व

तत्त्व  रूप जग  एक है, नाम  और रूप अनेक .
एक अनेक से भिन्न नहीं, तत्त्व तत्त्व सब एक.

ग्रन्थ  वही  है अर्थ  नए,  नूतन  सरस  नवीन .
मूल  वही  है  फूल नए,  जानत  सकल  प्रवीण.

एक रंग में  सात रंग है, सात रंग मिल एक.
ब्रह्म  ही  राम-रहीम है, दोनों  ही  है  एक.

ब्रह्म वही सदग्रंथ वही, भाषा और लिपि अनेक.
ऋषि मुनि  साधु फकीर, गावत निजहि विवेक.

कहे अभेद जो भेद बिना, सगुण बिना कहे निर्गुण.
है कोई ज्ञानी विज्ञानी, कोई फकीर या साधु निपुण?

शुभ - अशुभ के द्वन्द में, क्यों घुट रहे हो तुम?
अशुभ में ही शुभ छिपा, शुभ - अशुभ हो तुम.

बंधन और मुक्ति भवर में, क्यों उलझ रहे हो तुम.
जुड़ना मोह से बंधन है, छूटना ही मोह से मुक्ति.

                   
                              डॉ जय प्रकाश तिवारी

8 comments:

  1. बहुत ही प्रभावी प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-

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  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।

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    1. आभार चर्चामंच पर स्थान देने के लिए

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  3. एक रंग में सात रंग है, सात रंग मिल एक.
    ब्रह्म ही राम-रहीम है, दोनों ही है एक....

    सच्व्ह कहा है ... ये उसी की माया है जो अलग अलग रूप में आती ... पर उसको कोई पहचानने का प्रयास नहीं करता ...

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    1. आभार इस ब्लॉग पर पधारने और उत्साह वर्द्धक टिप्पणी के लिए .......

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  4. शुभ - अशुभ के द्वन्द में, क्यों घुट रहे हो तुम?
    अशुभ में ही शुभ छिपा, शुभ - अशुभ हो तुम.
    .....आपने बहुत सही कहा,,,,

    Recent post: रंग गुलाल है यारो,

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  5. आभार इस ब्लॉग पर पधारने और उत्साह वर्द्धक टिप्पणी के लिए .

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