प्रेम गीत को गाता हूँ मै
राधा - राधा रटता हूँ मैं
मजबूरी यह नहीं है मेरी
खुद प्रेम की यह कमजोरी.
यह प्रेम चाहता आश्रय केवल
बिन आश्रय नहीं टिक सकता
अब हुआ प्रेम है राधा से जब
क्या कभी वह मिट सकता?
सांसारिक यह प्रेम क्षणिक
यह प्रेम नाम पर धोखा है.
नाम-रूप सब मिटने वाले
यह भ्रम है, एक झरोखा है.
कान्हा तो केवल प्रेम पियारा
सब ग्रंथन में देखो उजियारा
जिसने ढूँढा उसने ही पाया
जानि लेउ सब जाननिहारा.
इस भाव गीत को गाता हूँ मैं
नंगा यह ढोल बजता हूँ मै
अश्रुधार बहता रहता हूँ मैं
विरह लिए छपिटाता हूँ मैं.
जानने वाले जानते हैं सब
हालत मेरी पहचानते हैं सब
अब आयेंगे वे खुद दौड़े-दौड़े
इस बात को भी जनता हूँ मैं.
प्रेम गीत को गाता हूँ मै
राधा - राधा रटता हूँ मैं
मजबूरी यह नहीं है मेरी
खुद प्रेम की यह कमजोरी.
राधा राधा रटना,यह मेरी नही मजबूरी
ReplyDeleteप्रेम में प्रेमियों की,होती यही कमजोरी,,,,,
सुंदर प्रेम गीत ,,,बधाई तिवारी जी,,,,
RECENT POST...: जिन्दगी,,,,
बहुत सुंदर, भक्ति में डूबी कविता..
ReplyDeleteधीरेन्द्र जी,
ReplyDeleteअनीता जी,
पधारने और सकारात्मक टिप्पणियों के लिए आभार. प्रेम दर्शन को समझाने में आपकी टिप्पणियाँ बहुत काम आएँगी. अकबर पुनः आभार.
जानने वाले जानते हैं सब
ReplyDeleteहालत मेरी पहचानते हैं सब
अब आयेंगे वे खुद दौड़े-दौड़े
इस बात को भी जनता हूँ मैं.
प्रेम गीत को गाता हूँ मै
राधा - राधा रटता हूँ मैं
मजबूरी यह नहीं है मेरी
खुद प्रेम की यह कमजोरी.
मैने रटना लगाई रे कृष्ण तेरे नाम की ……………॥
कान्हा तो केवल प्रेम पियारा
ReplyDeleteसब ग्रंथन में देखो उजियारा
जिसने ढूँढा उसने ही पाया
जानि लेउ सब जाननिहारा.
भक्तिपूर्ण सुंदर भाव !
सादर !