कविता
और गीत
तो अन्यतम
साधना है -
शब्दों का.
और शब्द?
शब्द तो
आराधना है -
अक्षरों का.
इन अक्षरों
और शब्दों के
युग्म ने ही रचा है -
साहित्य, सदग्रंथ
और सृष्टि ग्रन्थ .
ये अक्षर ही हैं
जिन्हें हम कहते
"पञ्च महाभूत"
'अ' से अग्नि,
आ' से आकाश
'ग' से गगन,
ज' से जल
'स' से समीर,
'प' से प्रकाश
क्या इन्ही से
नहीं हुआ है
इस सृष्टि
का विकास
रचा सृष्टि ने
मानव को
मानव की अपनी
अलग सृष्टि है.
अपनी - अपनी
व्याख्या है अब
परख - परख
की अपनी दृष्टि.
बहुत सुन्दर और अर्थपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteआभार,डॉ.साहिब.
वाह अति उत्तम व्याख्यात्मक प्रस्तुति
ReplyDeleteसच है शब्द से ही श्रष्टि का निर्माण भी हुवा है .. उसका चलायमान भी हुवा है ... अनुपम व्याख्या ...
ReplyDeleteदार्शनिक अनुभूतियों में विषद अर्थ लिए ,सरोकार रखती रचना .... बधाईयाँ जी ,
ReplyDeleteदृष्टि-भेद से उपजते, अपने अपने राम |
ReplyDeleteसत्य एक शाश्वत सही, वो ही हैं सुखधाम |
वो ही हैं सुखधाम, नजरिया एक कीजिये |
शान्ति का पैगाम, देश-हित काम कीजिये |
पञ्च-भूत ये वर्ण, वन्दना इनकी ईश्वर |
धर्म कर्म का मर्म, समझता जाए रविकर ||
सही बात आपसे सहमत
Deleteवाह ... अनुपम भाव लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति।
ReplyDeleteरचा सृष्टि ने
ReplyDeleteमानव को
मानव की अपनी
अलग सृष्टि है
बहुत ही गहन भाव!
मनुष्य अपनी एक अलग दुनिया बना ही लेता है अपने आस पास !
साभार !