हमने देखी है आपके अन्दर
मानवता की एक झलक,
इसलिए आमंत्रित किया है,
कुछ कहने का दुस्साहस किया है.
क्या कहा आपने भाई साहब?
आपको अध्यात्म से लगाव है.
कोई बात नही, केवल इतना सोचिये:
केवल एकांगी विकास क्या करेगा?
ज्यादा से ज्यादा आपको ताड़ का
एक लम्बवत पेड़ बना देगा.
और आपने क्या कहा भाई साहब?
भौतिकवादी है, आपको धन से लगाव है?
कोई बात नही, केवल इतना सोचिये:
यह भी एकांगी बना देगा.
अमरबेल की तरह, क्षैतिज प्रगति;
तो होगी, परन्तु.रीढ़ की हड्डी नहीं होगी.
उंचाई का एकदम अभाव होगा,
यह दीन - हीन - पंगु बना देगा.
अनियमित प्रगति, आपके जीवन की
गति को 'जिग-जैग' बना देगी.
'जिग-जैग', एक ऐसी गति है;
जहाँ श्रम - परिश्रम तो है लेकिन,
सब कुछ, दिशाहीन - निरर्थक...
इसकी परिणति मात्र थकन है;
जिसका न आध्यात्मिक मूल्य है,
और न ही कोई भौतिक मूल्य.
क्या यह उचित नहीं होगा?
कि प्रगति और उत्थान संतुलित
और सुनियोजित किया जाय? .
संतुलन और समग्रता की इस स्थिति में,
हर प्रगति बन जाएगी, हमारे लिए -
एक 'त्रिज्या'; और हम - 'एक वृत्त',
'एक शून्य'... और ....'एक अनंत'.
'वृत्त' के सुविचाररूपी त्रिज्या को,
सद्भावना से अभिसिंचित कर,
श्रमशीलता के उर्वरक से,
'मनोवांछित व्यास की वृत्त'
संरचना में, कोई संदेह नहीं.
और 'वृत्त' क्या है?
सम्पूर्णता का बोधक,
परम सत्ता का सूचक,
जिसे मान्यता प्रदान की है,
अध्यात्म और विज्ञानं,
दोनों ने ही एक साथ.
दुर्गुणों से रहित हम 'शून्य' हैं,
'समाधि' हैं, 'कैवल्य' हैं, 'निर्वाण' हैं,
'बका', 'फना' और 'जीवन मुक्त' हैं.
सद्गुणों से पूरित, हम 'विराट' हैं.
'अनंत' हैं, 'परिपूर्ण' हैं, 'सम्पूर्ण' हैं.
यही 'पूर्णता' है, 'पूर्णता का दर्शन' है.
जो गुम्फित है, इस उपनिषद् सूत्र में -
"पूर्णं अदः पूर्णं इदं पूर्णात पूर्णं उदच्यते,
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णं इव अवशिष्यते".
क्या बात है!!
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि का लिंक कल दिनांक 11-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगा। सादर सूचनार्थ
यही 'पूर्णता' है, 'पूर्णता का दर्शन' है.
ReplyDeleteजो गुम्फित है, इस उपनिषद् सूत्र में -
"पूर्णं अदः पूर्णं इदं पूर्णात पूर्णं उदच्यते,
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णं इव अवशिष्यते".
बेहतरीन सुंदर रचना,,,,, ,
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
सुंदर विश्लेशन करती कविता ....गहन भाव भी ...
ReplyDeleteसादर,
शुभकामनायें.
क्या बात है!सुंदर विश्लेशन करती कविता ....गहन भाव
ReplyDelete"पूर्णंअदः पूर्णं इदं पूर्णात पूर्णं उदच्यते,
ReplyDeleteपूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णं इव अवशिष्यते".
बेहतरीन सुंदर रचना......
Thanks to all foe kind visit and creative comments please.
ReplyDeleteयही 'पूर्णता' है, 'पूर्णता का दर्शन' है.
ReplyDeleteजो गुम्फित है, इस उपनिषद् सूत्र में -
"पूर्णं अदः पूर्णं इदं पूर्णात पूर्णं उदच्यते,
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णं इव अवशिष्यते".
भौतिक द्वंद्व को रेखांकित करती श्रेष्ठ रचना .
गहन भाव लिए बहुत ही बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteजीवन के कई सवाल हल करता है आपका यह फ़ॉर्मूला
ReplyDeleteYour comments are as a award for me. I am pleased if any one think it solves the problems of human life. Thanks.
Deleteबहुत प्रसन्नता हुयी आज यह रचना पढ़ कर .. आपका सहृदय आभार व अभिवंदन !
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