कविता को कब रचा है मैंने?
कविता ने रचा स्वरुप है मेरा.
मैंने कब साहित्य लिखा है?
लिखा साहित्य ने सबकुछ मेरा.
लेख कहानी नहीं लिखा कुछ
नहीं भाषा पर अधिकार है मेरा.
मैं हूँ केवल निमित्त मात्र
जो रच जाता सब कहा है तेरा.
मै तो बस एक अनुरागी हूँ
जाता हूँ डूब मैं भाव में तेरे.
आदत सी बन गयी है अब तो,
हो तपती धूप या शीत सवेरे.
मैं तो अनाम का अनुरागी,
सब छोड़-छाड़ के हुआ विरागी.
लेकिन रखने मान तुम्हारा,
फिर से बना तेरा अनुरागी.
मैं तो बस करता हूँ वही
मन मेरे घुस जो तू कहती है.
ये जग चाहे जो कह ले मुझ को,
मेरा हाथ पकड़ के तू लिखती है.
कविता ने रचा स्वरुप है मेरा.
मैंने कब साहित्य लिखा है?
लिखा साहित्य ने सबकुछ मेरा.
लेख कहानी नहीं लिखा कुछ
नहीं भाषा पर अधिकार है मेरा.
मैं हूँ केवल निमित्त मात्र
जो रच जाता सब कहा है तेरा.
मै तो बस एक अनुरागी हूँ
जाता हूँ डूब मैं भाव में तेरे.
आदत सी बन गयी है अब तो,
हो तपती धूप या शीत सवेरे.
मैं तो अनाम का अनुरागी,
सब छोड़-छाड़ के हुआ विरागी.
लेकिन रखने मान तुम्हारा,
फिर से बना तेरा अनुरागी.
मैं तो बस करता हूँ वही
मन मेरे घुस जो तू कहती है.
ये जग चाहे जो कह ले मुझ को,
मेरा हाथ पकड़ के तू लिखती है.
मैंने कब साहित्य लिखा है?
ReplyDeleteलिखा साहित्य ने सबकुछ मेरा... यही सत्य है ...
मैं हूँ केवल निमित्त मात्र
ReplyDeleteजो रच जाता सब कहा है तेरा.,,,,,सुंदर पंक्तियाँ
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
हम कविता लिखते हैं कविता हमारा जीवन रचती है।
ReplyDeleteThanks to all for kind visit and creative comments please. Thanks again.
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