Tuesday, May 22, 2012

न इतना गम मनाओ तुम!



एक करारी हार पर

न इतना गम मनाओ तुम!

वीर हो, तुम धीर हो

पग दूसरा फिर बढाओ तुम.

त्याग दो इस हार पर

मन में जो भी हो हताशा,

आत्म चिंतन की घडी में

आज कैसी यह निराशा?



इस हार को ठोकर बना लो

दो कदम आगे बढोगे,

मान बैठे फिसलन इसे यदि

कदम चार नीचे गिरोगे.

करती भ्रमित काली जो

बदली, राह में अंधेर बनकर.

लेती हर सारी व्यथा को

ठंडीबूँद की बौछार बन कर.

जीत हो या हार हो

बस दो कदम का फासला है

हार पड़ जाती गले में

पास जिसके हौसला है.

7 comments:

  1. जीत हो या हार हो
    बस दो कदम का फासला है
    हार पड़ जाती गले में
    पास जिसके हौसला है.

    बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....

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  2. हार में ही जीत है , हार की गांठें मत बनाओ ... हार को जीत की रौशनी मानो

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  3. हार में ही जीत है , हार की गांठें मत बनाओ ... हार को जीत की रौशनी मानो

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  4. सुन्दर भाव संयोजन।

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  5. नैशर्गिक रचना, स्फूर्ति व आत्मिक बल प्रदान करती हुयी निराली ,कविता .... शुभ कामनाएं डॉ.साहब

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  6. सही वक्त पर सही रचना के लिए आभार ....बेहद खूबसूरती से लिखी गई रचना

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  7. बहुत ही प्रेरणादायी और ओजपूर्ण कविता है आपकी.
    सार्थक सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.

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