एक करारी हार पर
न इतना गम मनाओ तुम!
वीर हो, तुम धीर हो
पग दूसरा फिर बढाओ तुम.
त्याग दो इस हार पर
मन में जो भी हो हताशा,
आत्म चिंतन की घडी में
आज कैसी यह निराशा?
इस हार को ठोकर बना लो
दो कदम आगे बढोगे,
मान बैठे फिसलन इसे यदि
कदम चार नीचे गिरोगे.
करती भ्रमित काली जो
बदली, राह में अंधेर बनकर.
लेती हर सारी व्यथा को
ठंडीबूँद की बौछार बन कर.
जीत हो या हार हो
बस दो कदम का फासला है
हार पड़ जाती गले में
पास जिसके हौसला है.
जीत हो या हार हो
ReplyDeleteबस दो कदम का फासला है
हार पड़ जाती गले में
पास जिसके हौसला है.
बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
हार में ही जीत है , हार की गांठें मत बनाओ ... हार को जीत की रौशनी मानो
ReplyDeleteहार में ही जीत है , हार की गांठें मत बनाओ ... हार को जीत की रौशनी मानो
ReplyDeleteसुन्दर भाव संयोजन।
ReplyDeleteनैशर्गिक रचना, स्फूर्ति व आत्मिक बल प्रदान करती हुयी निराली ,कविता .... शुभ कामनाएं डॉ.साहब
ReplyDeleteसही वक्त पर सही रचना के लिए आभार ....बेहद खूबसूरती से लिखी गई रचना
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणादायी और ओजपूर्ण कविता है आपकी.
ReplyDeleteसार्थक सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.