Monday, February 27, 2012

कहीं और भरूँ मै गागर क्यों?



अधरों  से  टपकते  गीत तेरे
नजरों से नज्म नजाकत की.
तेरी जुल्फ कथा का सागर है.
लगती बिंदिया यह हाइकू सी.

यह रंगीन वस्त्र पूरा साहित्य,
इसमें फूल खिले,वह चम्पू है.
तेरे आँचल नाट्य-कहानी है,
तू परियों के देश की रानी है.

चितवन से बहे कविता की धार
और चाल गजल मदहोश करे.
कहीं और भरूँ मै गागर क्यों?
जब तू ही प्यार का सागर है.

अब  कह  दे  तू, जो शेष बचा
सब  चले गए,  मै  एक  बचा.
मेरे चिंतन नभ की सविता तू.
मेरे  जीवन  की  है कविता तू.

3 comments:

  1. यह रंगीन वस्त्र पूरा साहित्य,
    इसमें फूल खिले,वह चम्पू है.
    तेरे आँचल नाट्य-कहानी है,
    तू परियों के देश की रानी है... परम्परा आज भी जीवित है , छंद रंग रूप कायम हैं

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  2. आज लालित्य बरस रहा बेशुमार कही बसंत की बहार-मंजूषा ने कपाट तो नहीं गिरा दिए बादलों की ओट से....सरस सुरुचिपूर्ण , मनभावन सृजन .... साधुवाद जी डॉ.साहब /

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  3. लगती बिंदिया यह हाइकू सी.
    बेहद खूबसूरत प्रयोग!

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