एक बार पुनः झंकृत कर दो माँ!
एक बार पुनः झंकृत कर दो माँ!,
वीणा की अपनी सु-मधुर तान.
हे वीणा पाणि! हे हँस वाहिनी !
हे श्वेत वसना! हे जगत व्यापिनी!
उर मेरे कालिमा जो है बैठी,
धारण करे वह. श्वेत परिधान
परिधान लगे न कालिमा कोई,
जगा देना उर, ऐसा कुछ ज्ञान
अब तक तो यूँ ही भटकता रहा,
मरुस्थल से अन्तः स्थल तक.
जीवन को व्यर्थ गवाया मैंने,
कुछ होश न आया मुझे अबतक.
बारम्बार फिसलता हूँ फिर,
झाड धूल, फिर चल पड़ता हूँ.
कोई मार्ग नहीं अब मुझे ढूंढना,
दिखला दो, मझको निज धाम.
जान नहीं पाया हूँ अब भी,
शब्द - अर्थ - वाणी का ज्ञान.
अपनी वीणा के वाणी से
आज करा दो मुझे यह ज्ञान.
हे मातु शारदे! मुझे यह वर दे
आऊँ सदा इस राष्ट्र के काम.
अपनी संस्कृति भूल न जाऊं,
प्रकृति से कभी मैं न टकराऊँ.
नव पल्लव सा, कर दे यह जीवन,
बने विचार, ज्यों नदी- बाग़- वन.
अंतर मन प्रखर ज्योति जला दे!
वीणा स्वर के कुछ राग बता दे!
हे सरस्वती माँ! हे मातु शारदे!
हे वीणा पाणि! हे हँस वाहिनी !
हे श्वेत वसना! हे जगत व्यापिनी!
हे आदि शक्ति! सर्वर्त्र व्यापिनी!
उर मेरे कालिमा जो है बैठी,
ReplyDeleteधारण करे वह. श्वेत परिधान
परिधान लगे न कालिमा कोई,
जगा देना उर, ऐसा कुछ ज्ञान
माँ शारदा की कृपा रहे ..सुन्दर भाव
सभी आगंतुकों का आभार, और उनके सकारात्मक विचारों का स्वागत
ReplyDeleteवंदन ,अभिनन्दन ,बधाईयां , श्रद्धावनत इस स्तुति काव्य को सृजित करने के लिए ..... बहुत -२ आभार /
ReplyDeleteजय मां शरदे!
ReplyDeleteवसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
सभी आगंतुकों को स्नेह भरा नमस्कार. टिप्पणियों का स्वागत. यह रचना Catdh My Post पर भी चयनित की गयी है. सादर सूचनार्थ.
ReplyDeleteबेहद सुन्दर प्रार्थना...!
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनाएं!
Thanks to all criticizers and regards for their valuable comments.
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