Friday, December 2, 2011

इसलिए सीमा पर डटकर वे झेलते हैं गोली.


खुश हो लेते हैं हम नकली पटाखे छोडकर
नाच उठाते उमंग से हम अनार को जलाकर.
 
जरा सोचो ख़ुशी उनकी, उमंग तरंग उनकी
जो गोले छोड़ते हैं, बम असली फोड़तें हैं.
 
हम माना सकें दीवाली, हम खेल सकें होली
इसलिए सीमा पर डटकर वे झेलते हैं गोली.
 
हम सजाते दीपक से घरों को, घी-तेल डालते है.
हमारा भविष्य सवारते वे, अपना लहू जला के.
 
आज आइये! नाम उनके कुछ दीप हम जला दें.
हो गए हैं जो शहीद, उन्हें दीप मालाओं से सजादे .

3 comments:

  1. आज आइये! नाम उनके कुछ दीप हम जला दें.
    हो गए हैं जो शहीद, उन्हें दीप मालाओं से सजादे .... sahi kaha aapne..... mera un saheedo ko shat-shat naman...

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  2. हम सजाते दीपक से घरों को, घी-तेल डालते है.
    हमारा भविष्य सवारते वे, अपना लहू जला के.
    sach main bahut bada tyaag karate hain .bahut sunder rachanaa .badhaai aapko,
    meri nai post per aapkaa swagat hai.jarur padhaarain.

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  3. आप की पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (२०) के मंच पर प्रस्तुत की गई है /कृपया वहां आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप हिंदी भाषा की सेवा इसी लगन और मेहनत से करते रहें यही कामना है / आभार /link


    http://hbfint.blogspot.com/2011/12/20-khwaja-gareeb-nawaz.html

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