स्वागत, स्वागत, हे आर्यपुत्र !
वंदन तेरा अभिनन्दन तेरा.
कैसे करूँ मैं तेरी आरती?
रह गयी कहाँ पूजा की थाली?
पधारो ! पधारो ! हे भगवान् !
सबरी की कुटिया के श्रीराम.
मैंने त्याग दिया है वैभव सारा,
हुआ जब से ओझल राम हमारा.
रख ली लाज तूने अब मेरी,
इस गौरव हेतु आभारी हूँ.
हे धरा के यश! मेरी बात सुनो,
नारी तुच्छ नहीं, बड़ी भारी है.
तप में, त्याग में, शील-संयम में,
सेवा - कर्म - साधना - भक्ति में,
यह नर जब तक रहेगा धरा पर
होगा वह नारी जाति का आभारी.
पुरुष तो है बस मानसिक ज्ञान,
यह नारी ही उसकी मनः शक्ति.
पहचान ज्ञान की इसी शक्ति से
जीवन भी उसकी इसी शक्ति से.
मात्रि रूप में सर्जक है वह.
भार्या रूप में मन की आशा.
बहन रूप में स्नेह वही है,
पुत्री रूप वह है - अभिलाषा.
जब भिक्षु रूप में आये हो,
मुझको भी तुझे कुछ देना होगा.
करती हूँ अर्पित राहुल को,
शोणित के लाल को झोली में.
इसे करो तुम अंगीकार,
हे नाथ ! हमारा तुच्छ दान.
तेरी चरण धूलि को पा करके,
मैं हुयी धन्य सब पा करके.
रोकूंगी नहीं तुम्हे पथ से,
निज हाथों तिलक लगाउंगी.
तेरा पथ है - 'विश्व कल्याण'.
नहीं चाहत मेरी निज कल्याण.
मैं पंथ निहारे बैठी हूँ,
हूँ गर्विता, भाग्य पर एंठी हूँ.
तूने लौटाया मुझे मेरा मान,
एक क्षत्राणी का किया सम्मान.
अब नहीं बचा कोई उपालंभ,
देखते ही दूर सब क्रोध-दम्भ.
हुई आज फिर सद्गति मेरी,
मुक्ति की हुई अभिलाषा पूरी.
अब कह लो चाहे 'निर्वाण' इसे,
या कह लो निज मन का अर्पण.
जो भी है अब, सब है तेरा,
तुझको अब सर्वस्व समर्पण.
कृत कृत्य हुयी, कोई रंज नहीं,
निर्वाण के संग, कोई जंग नहीं.
मेरा उद्देश्य भी अब जन कल्याण,
अनुगामिनी तेरी, हे कृपानिधान !
यह है एक नारी का सम्मान,
ज्यों शबरी और द्रौपदी का मान.
तुम्हे पूजती दुनिया सारी,
कहाँ तुच्छ मैं गृहिणी नारी.
मैंने आज सब खोया पाया,
तूने सर्वस्व मुझे आज लौटाया.
पुरुष तो है बस मानसिक ज्ञान,
ReplyDeleteयह नारी ही उसकी मनः शक्ति.
पहचान ज्ञान की इसी शक्ति से
जीवन भी उसकी इसी शक्ति से.
बहुत बढ़िया |
बधाई ||
http://dineshkidillagi.blogspot.com/
सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें.
ReplyDeleteबहुत प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति..आभार
ReplyDeleteजो भी है अब, सब है तेरा,
ReplyDeleteतुझको अब सर्वस्व समर्पण.
कृत कृत्य हुयी, कोई रंज नहीं,
निर्वाण के संग, कोई जंग नहीं.
मेरा उद्देश्य भी अब जन कल्याण,
अनुगामिनी तेरी, हे कृपानिधान !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आभार
ReplyDeleteखुबसूरत विचारणीय सृजन सिध्हस्त करों से , इतना की पिरोते जाएँ लड़ियों में ,सम्मान के साथ ,मुबारकबाद ....डॉ साहब .
ReplyDeletehttp://urvija.parikalpnaa.com/2011/10/blog-post_15.html
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण उदगार ! य्शोधरा के महान व्यक्तित्व को उजागर करती सुंदर कृति!
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteप्रभावशाली अभिवयक्ति....
ReplyDeleteतुम्हे पूजती दुनिया सारी,
ReplyDeleteकहाँ तुच्छ मैं गृहिणी नारी.
मैंने आज सब खोया पाया,
तूने सर्वस्व मुझे आज लौटाया.
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आकर मेरा भी मनोबल बढ़ाएं .धन्यवाद ।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...........
ReplyDeleteपवित्र भावोंकी हृदयस्पर्शी रचना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..... .
ReplyDeleteAdbhut very nice all articles
ReplyDeleteसभी विचारकों, पाठकों, सुधी समीक्षकों का बहुत - बहुत आभार. टिप्पणियों का स्वागत. साथ ही ब्लॉग पर विलम्ब से पहुचने के लिए क्षमा भी.
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