विकास विकास की करते बात
हम पहुच गए हैं भ्रष्टाचार तक.
आचार विचार सब भूल गए
छूट गया है शिष्टाचार तक.
आखिर क्या हमसे चूक हुई?
वह गली कौन जो छूट गयी?
कब राह गलत पकड़ी हमने?
कब गियर विकास बदली हमने?
है क्या विकास? सोचना होगा,
क्यों हो विकास? सोचना होगा.
हो कैसे विकास? सोचना होगा,
क्या आदर्श विकास? सोचना होगा.
विकास है - संभावनाओं का विकास.
विकास है - संवेदनाओं का विकास.
विकास है - दायित्वों का विकास.
विकास है - कर्त्तव्यों का विकास.
विकास के मूलतः दो ही क्षेत्र,
ऊर्ध्व विकास और क्षैतिज विकास.
पहले को कह लो तुम आध्यात्मिक
कह लो दूजे को, भौतिक विकास.
नहीं रखा हमने संतुलन इसमें,
यही एक चूक हुयी है इसमें.
भौतिक विकास तो खूब किया,
नैतिक विकास कहाँ है इसमें?
इसको दूसरे ढंग से सोचो,
सिर के बाल नहीं तुम नोचो.
रखो धैर्य और करो विचार,
तब समझोगे गति के प्रकार.
हम बात गणित की करते रहे,
विज्ञान की बात भी करते रहे.
लेकिन इतना समझ न आया,
दिशा विपरीत गति करते रहे.
विकास है - देवत्व तक जाना,
और पतन है - दानव बन जाना.
आज कहाँ हम खड़े हुए ?
बोलो किधर हमें अब जाना?
माँ! चाहे देव नहीं बन पायें,
स्वीकार नहीं दानव बन जाना.
रहे संरक्षित अंतर में मानवता,
अब मानव का ही अलख जगाना.
माँ से मिलजुल हम करें प्रार्थना,
हे माँ! अबकी सन्मार्ग दिखाना.
हे माँ! अबकी सन्मार्ग दिखाना.
हे माँ! अबकी सन्मार्ग दिखाना.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।माता रानी आपकी सभी मनोकामनाये पूर्ण करें और अपनी भक्ति और शक्ति से आपके ह्रदय मे अपनी ज्योति जगायें…………सबके लिये नवरात्रि शुभ हो॥
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...मोहक... वाह!
ReplyDeleteआपको नवरात्रि पर्व की बधाई और
शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं
बहुत सुन्दर प्रस्तुति|नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं|
ReplyDeleteखविता का भाव अच्छा लगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteजब हम सन्मार्ग पर चलते हैं तो हमारा उर्ध्व विकास होता है, पर आज तो क्षतिज विकास की होड़ लगी है।
ReplyDeleteचर्चा-मंच पर हैं आप
ReplyDeleteपाठक-गण ही पञ्च हैं, शोभित चर्चा मंच |
आँख-मूँद के क्यूँ गए, कर भंगुर मन-कंच |
कर भंगुर मन-कंच, टिप्पणी करते जाओ |
प्रस्तोता का करम, नरम नुस्खा अपनाओ |
रविकर न्योता देत, द्वार पर सुनिए ठक-ठक |
चलिए रचनाकार, लेखकालोचक-पाठक ||
शुक्रवार
चर्चा - मंच : 653
http://charchamanch.blogspot.com/
सर्वप्रथम नवरात्रि पर्व पर माँ आदि शक्ति नव-दुर्गा से सबकी खुशहाली की प्रार्थना करते हुए इस पावन पर्व की बहुत बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDelete"कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि माता कुमाता न भवति"
"माँ अबकी सन्मार्ग दिखा" सुंदर रचना!
सच है अब तो बस माँ ही दुबारा अवतार ले और इन भ्रष्टाचारियों को खत्म करे ... इनको सत्य का मार्ग दिखाए ...
ReplyDeleteसभी समीक्षक भाई-बहनों को नमस्कार और सुझाव-टिप्पणी के लिए आभार..
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