Sunday, April 10, 2011

आत्मोत्सर्ग का स्वरुप


 
श्रद्धेय श्री अन्ना जी के समर्थन में १४ फ़रवरी को blog 'प्रज्ञान विज्ञान' पर तथा मासिक पत्रिका 'युग गरिमा' लखनऊ से प्रकाशित, के मार्च २०११ अंक में प्रकाशित रचना का पुनः प्रकाशन. इस रचना में कहीं न कहीं उसी भावनावों को जागृत करने की सदीच्छा है जो आज पूरे देश ने कर  दिखाया. यह रचना ब्लॉग जगत की ओर से श्री अन्ना जी को ही सादर समर्पित.

समाज में व्याप्त अत्याचार, अनाचार, भ्रष्टाचार शोषण का सामना करते -करते एक दिन वह स्थिति आ जाती है जब अन्दर सोया पुरुषार्थ भी जागृत हो उठता है. नहीं ...अब ...और नहीं...., बहुत दिन सह लिया..बहुत ज्यादा सह लिया..अब और नहीं सहूंगा...मिटा डालूँगा इसे....अन्याय का यह अस्वीकार बोध मानव मन को दो विकल्प उपलब्ध कराता है - प्रथम, हम अन्याय और शोषण की ओर से पूरी तरह विरक्त हो जाय, यह मान लें कि हमारे चरों ओर जो कुछ घटित हो रहा है हम उसके सहभागी नहीं है. हम कुछ नहीं कर सकते. अतएव हमारा कोई दायित्व नहीं. द्वितीय, यह स्थिति अन्याय, शोषण और भ्रष्टाचार से सीधे प्रतिकार और टकराव का है. पहली  स्थिति पलायनवादिता है, विवशता और पराधीनता की स्थिति है. दूसरी स्थिति अन्याय से आमने - सामने जूझने की स्थिति है जहां जीवन का मोह निरर्थक हो जाता है. और मृत्यु का वरण पहली अनिवार्य शर्त बन  जाती है.जहां मृत्यु के अनजाने भय में भी दायित्व का सौन्दर्य और विवेक का प्रकाश दिखाई देने लगता है. मन बोल ही उठता है - 'पहिला मरण कबूल कर जीवन की छड़ आस', यहाँ मृत्यु की कोई चिंता नहीं और जीवन से कोई मोह भी नहीं. बिना तत्त्वज्ञान के यह होता भी नहीं, वह शक्ति -साहस और ऊर्जा तभी मिलती है जब व्यक्ति में ज्ञान और दायित्व का, कर्त्तव्यबोध का उदय होता है. जब ऐसा होता है तो वह अन्याय और भ्रष्टाचार को सहने से इनकार कर देता है. यह स्थिति  पहले भी कई बार आयी है ..और आज भी आ उपस्थित हुई है.... 

परन्तु आज परिस्थितिया बदल गई है, शस्त्र नहीं उठाना है, अपना काम नियम - कानून और संविधान की परिधि में रहकर पूर्णतया अनुशासित ढंग से करना है. इसके लिए एक मात्र ब्रह्मास्त्र है -"वोट का अधिकार'. सोच-समझकर इसका प्रयोग करना है. हमें बलिदान भी देना होगा, शीश भी कटाना होगा: परन्तु वह शीश होगा जातिवाद का, क्षेत्रवाद का, धर्मवाद का, अलगाववाद का. हमें कुनबे की छोटी सोच की कुर्बानी देनी होगी. राष्ट्रीयता को सर्वोपरि और सर्वोच्च मानकर ही अपना अगला कदम उठाना होगा. व्यक्तिगत हितों की, स्वार्थों की, व्यापक हित के लिए होम करना पडेगा. यदि हम राष्ट्र के नाम पर इस दायित्व बोध को समझ सकें तो यही जागृति है, यही आज का आत्मोत्सर्ग है, अह्मोत्सर्ग है. अहंकारोत्सर्ग है, बलिदान है.आखिर आप इस देश के संवेदनशील नागरिक हैं, जागरूक है, शूर वीर है. ऐसे ही शूर-वीरों के लिए कबीर ने कहा था कभी - 'सूरा सोई सराहिये जो लड़े दीन के हेतु / पुर्जा पूर्जा कटि मरे ताऊ न छड़े खेत //' . यहाँ मरना नहीं है, मन को मारना है, वह भी स्व के लिए, सर्व के लिए जूझना है मैदान छोड़कर भागना नहीं है..

हम चार दीवारी के अन्दर भले ही हिन्दू रहे या मुसलमान , चार दीवारी  के बाहर हम भारतीय हैं और केवल भारतीय हैं.. आज का राष्ट्रधर्म और व्यक्ति धर्म दोनों ही यही है. यहाँ केवल सृजन है...., निर्माण है..., नवीन भारत का पुनर्जागरण है. यह किसी राजनीतिक की भाषा या प्रचार प्रसार नहीं, अपने अंतर्मन की आवाज है जो सिर्फ मित्रों और दोस्तों को हो सुनायी जा सकती है, दूसरों को नहीं. आज यही कार्य एक दायित्व मानकर राष्ट्रीयहित में एक आह्वान और एक निवेदन दोनों है. हमें अवांछनीय कार्यो को दृढ़ता से रोकना होगा. शार्टकट के सारे रास्ते और सुविधाशुल्क के प्रचलन पर दृढ़ता से रोक लगाना होगा. कम से कम हम स्वयं तो यह कार्य न करें. न अपनों को करने दे. संख्या हमारी अवश्य बढ़ेगी. आखिर हम भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार को कब तक सहें........क्यों सहें .......

8 comments:

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    एक बेहतरीन आलेख और अति सुन्दर आवाहन । यदि हम सभी केवल स्वयं को सुधार लें तो निश्चय ही अच्छे लोगों की संख्या बढ़ेगी और अभीष्ट की प्राप्ति होगी।

    .

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  2. आभार इस जानकारी के लिये।

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  3. बहुत सार्थक और प्रेरक पोस्ट..भ्रष्टाचार रोकने की सब से पहले पहल हमें अपने आप से करनी होगी. अगर व्यक्ति यह निश्चय करले कि वह किसी हालात में किसी काम को कराने के लिये रिश्वत नहीं देगा,यद्यपि इस में उसको तात्कालिक परेशानी अवश्य होगी, तो भ्रष्टाचार मिटाने में यह बहुत सार्थक कदम होगा. आभार

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  4. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (11-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. बहुत विचारणीय पोस्ट बधाई |
    आशा

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  6. Thanks to all for kind visit and creative comments please. We welcome creative criticism and logical analysis. Again thanks to all participants.

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  7. अन्ना हजारे की ये कोशिश रेगिस्तान हो रहे हमारे प्रजातंत्र में नखलिस्तान की तरह है . आपका आभार इस विचारोत्तेजक आलेख के लिए .

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  8. Ashish ji
    Thanks for visit and comments.

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