Monday, March 14, 2011

प्रज्ञान-विज्ञान और आइन्स्टीन


१४ मार्च, आज विज्ञान जगत के देदीप्यमान सितारा अलबर्ट आइन्स्टीन का जन्म दिवस
है. आइन्स्टीन एक ऐसा नाम जो विश्व शान्ति के लिए सदा प्रयत्नशील रहे, अनेकता
में एकता और विखराव में समन्वय ढूंढते रहे. उनके इस विलक्षण खोजी प्रवृत्ति ने
कब उन्हें वैज्ञानिक से एक दार्शनिक और कब  दार्शनिक से वैज्ञानिक बना दिया; न
वे खुद जान पाए और न यह जगत. लेकिन आइन्स्टीन जानते थे और कहते भी थे - 'अध्यात्म बिना विज्ञान के गूंगा है और विज्ञान बिना अध्यात्म के लंगडा'
इसलिए वे चलते रहे अपनी राह, अपने निराले अंदाज में. इसमें रोड़े भी आये और
खाई भी आई, लेकिन राह पथिक का रोक न पायी. आज उनके जन्मदिवस पर उस युगपुरुष को
नमन करते हुए स्नेहांजलि रूप में यह काव्यांजलि समर्पित है, जिसका शीर्षक है - 'प्रज्ञान-विज्ञान और आइन्स्टीन'

आखिर क्या है रूप तुम्हारा भोले,
प्रज्ञान - विज्ञान दोनों तुझे तोले.

'विन्दु' रूप जग कहता तुझको.
'नाद' रूप भी वह कहता है .
'नाद -विन्दु' से किन्तु अलग
रूप सगुण वह क्यों रचता है?

है कैसा रूप तेरा, कैसी माया
भटक रहा जग उसके बीच,
तुझे तौल रहे सब तर्क बुद्धि से
जग के बाहर और जगत बीच.

प्रज्ञान कहे तुझे -'गौरी शंकर'
विज्ञान तुन्हें 'न्यूट्रान' पुकारे,
कुछ कहते 'ऊर्जा - तरंग' तुझे
कुछ रूप 'प्रणव' तुम्हार बतावें .

दर्शनशास्त्र 'ओंकार' कहे तुम्हे
पुरुष - प्रकृति की बात बतावे,
जान गया कुछ तेरे रहस्य को
काहेको जे. पी. को तू भरमाये.

जल में थल, थल ऊपर जल है
जल-थल दोनों के बीच समाये,
जल-थल भेद से लेना हमें क्या?
हम तो अरूप के रूप निहारें.

जल बीच नाव, नाव में नाविक
नाविक तो पतवार हिलावे
आपे नाव, औ सवार हो आपे
जल हो आप, पतवार हो आपे.

चाहे बनो सरिता-गिरि-कानन
मानुष रूप भभूत है - आनन्,
तेरे इशारे पर खेल दिखावत
विष्णु हों खुद या हों चतुरानन.

सबसे अलग पर सबमे तुम्ही हो
अकार -उकार-मकार तुम्ही हो
तुम्ही 'पतझड़' और तुम्ही 'बसंत'
तुम्ही हो 'शून्य' और तुम्ही 'अनंत'.

ऊर्जा रूप तुम्ही हो -* 'E'* हो
द्रव्य रूप* 'm'* भी तुम्ही हो.
ऊर्जा रूप निर्गुण है तुम्हारा,
द्रव्य रूप में तुम्ही सगुण हो.

ऊर्जा - द्रव्य में क्या संबंध?
यह पूछो तुम आइन्स्टीन से.
दोनों हैं रूप बदलते कैसे?
यह भी पूछो आइन्स्टीन से.

ऊर्जा हो या हो - 'द्रव्यमान'
एक ही सत्ता के दो ये रूप.
द्रव्य निष्क्रिय और मूर्तरूप
ऊर्जा सक्रिय, 'अमूर्त-अरूप'.

ये ठीक बिल्कुल है - 'वैसे'
जैसे निर्गुण है, सगुण सरूप.
यदि भेद कोई लगता हो इसमे
विरोधाभास दिखता हो इसमें

आप को हम एक सूत्र बताएं
सारे विरोध फुर्रर्रर्र हो जाएँ.
आओ ये सारे भेद मिटायें
'थियरी रिलेटिविटी' अपनाएँ.

भाव दृष्टि से -'सेवक स्वामी',
बुद्धि दृष्टि से -'अंश और अंशी'.
ज्ञान दृष्टि से - 'समं तुभ्यं',
नमामि-नमामि शिव शंकरं.

चर्म दृष्टि देखो तो -'अनेक',
आत्म दृष्टि सभी हैं - 'एक'.
एक ही है जो अनेक सा दीखे,
है एक अनेक, नहीं कुछ भेद.

तेरे  सिवा  कोई  और न .दूजा...
तुम्ही न्यूट्रान, पोजिट्रान,  न्युट्रीनो
प्रोटान, इलेक्ट्रान, फोटान तुम्ही हो,
तुम्ही हो,.तुम्ही हो,.तुम्ही हो, तुम्ही हो,
तुम्ही हो., तुम्ही हो, तुम्ही हो,.तुम्ही हो.

4 comments:

  1. आपकी सुंदर पोस्ट पढ़कर अंतर आह्लादित हो उठा है, आइंस्टीन को याद करते हुए उनकी खोज को जिस तरह आपने शब्दों में ढाला है प्रशंसनीय है , आभार ! सचमुच एक ही तत्व अनेक रूपों में प्रकट हो रहा है.

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  2. बहुत प्रभावशाली प्रस्तुति..आभार

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  3. Thanks to all participants for their valuable comments.

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