Wednesday, March 9, 2011

हे भोले! बंद अधर अब खोलो




सिर के ऊपर जटा जूट
उसमे लिपटी सुरसरि है,
वक्र चन्द्र है भाल विराजे
गले में सर्पों की माला है.
शोभित शक्ति वाम में उनके
वाहन सिंह बैठा है सामने.

बार-बार वह नंदी बैल को, 
जाने क्यों देखो घूर रहा है....
नंदी भी आँख मिलाये उससे
न जाने क्या बात कर रहा.
पलकों को अपने नचा-नचा,
मैत्री सन्देश को सुना रहा है.


उधर सर्प की माला पर देखो -
मयूर की तीखी नजर गाड़ी है. 
पर दृष्टि है सर्प की मूषक पर
जो मोदक हाथ लगाय रहा है.

.
ज्यों मातु पिता, भाई भाई
बहनों ने गाढ़ी प्रीती बढ़ाई है,
वैसे ही ये जीवन-शत्रु परस्पर
आपस में एकता-मैत्री बनाई है.

यह तो उनकी वृत्ति-प्रवृत्ति है
मिटती नहीं यह जल्दी है.
अनुरक्ति अपर्णा की शिव से
सुरसरि से नहीं विरक्ति है.
वाहनों में देखो मिटा वैर सब
अब स्नेह - सद्भाव बढ़ाया है.
निज वैर- भाव भुलाकर के...
मानव को सन्देश सुनाया है.


गुणों में भेद जीवन में भेद 
शैली में भेद गति में भी भेद
आकृति में भेद प्रकृति में भेद
भेदों के बीच सब एक- 'अभेद'.

वैर न जाने कहाँ खो गया..?
मिटा वैर और प्रेम हो गया.
हे भोले! तुम सन्देश सुनाते
स्नेह सद्भाव का पाठ पढ़ाते

8.jpg

काश आप से सीख हम पाते.
.जीवन में अपने इसे निभाते.
इतनी कठिन परीक्षा न लो
अपने बंद अधर अब खोलो!

चाहते हो - 'मानव में एकता'
एक बार मुख से यह बोलो!!
अपने बंद अधर अब खोलो!!  
अपने बंद अधर अब खोलो!!

7 comments:

  1. चाहते हो - 'मानव में एकता'
    एक बार मुख से यह बोलो!!
    अपने बंद अधर अब खोलो!!
    अपने बंद अधर अब खोलो!!

    वाह बेहद प्रेरणादायी और सार्थक पंक्तियाँ...मुझ अकिंचन की और से बधाई एवं आभार स्वीकार करें |

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  2. गुणों में भेद जीवन में भेद
    शैली में भेद गति में भी भेद
    आकृति में भेद प्रकृति में भेद
    भेदों के बीच सब एक- 'अभेद'.

    बहुत गहन और सार्थक चिंतन....बहुत प्रेरक प्रस्तुति..काश सभी यह सन्देश समझ पायें...आभार

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  3. अपने बंद अधर अब खोलो!!
    अपने बंद अधर अब खोलो!!

    डॉ तिवारी ,
    इतनी उत्कृष्ट रचना विरले ही पढने को मिलती है। बहुत प्रेरक प्रस्तुति, आपकी लेखनी को नमन । आनंद आ गया ।

    .

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  4. बहुत प्रेरणादायक रचना, भेद के मध्य अभेद को दर्शाती सुंदर कविता !

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  5. गुरूजी ! मन चंगा तो कठौती में गंगा !! बहुत ही सुन्दर !धन्यवाद..

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  6. श्रीमान रचना पढ़कर धन्य हो गया ...
    जय भोले...
    ॐ नमः शिवाय

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  7. चाहते हो- ‘मानव में एकता‘
    एक बार मुख से यह बोलो!!
    अपने बंद अधर अब खोलो!!
    अपने बंद अधर अब खोलो!!

    रचना में गहन चिंतन समाहित है।
    सर्वे भवन्तु सुखिनः ।

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