सखी! मधुमास आयो री
झूम रही गेहूं की बाली,
पीली सरसों झूम रही है.
अरहर अलसी चना मटर
सब खोले बाहें लिपट रही है.
धरती ने ओढ़ी धानी चूनर
पवन को सूझी नयी शरारत
कभी तेज कभी मंद-मंद बह
देखो विजन डुलाय रहा है.
यह कौन कर रहा देखो इशारा ?
संकेत पर किसके प्यारा घूंघट
यह धरती का अब उठा रहा है.
खेतखलिहान में जुटा कृषक भी
गीत - बासंती गुनगुना रहा है
होली गीत का प्यारा सा मुखड़ा
हे सखी! किसे ये सुना रहा है ?
देख सखी! मै सच कहती हूँ..,
मधुमास का ऋतु आ गया है.
बहुत सुन्दर मधुमास के रंग बिखेरती सुन्दर रचना। बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना। बधाई।
ReplyDeleteमधुमास की सुंदर छटा लाई आपकी रचना..... बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह! मधुमास की सुन्दर रचना अपने रंग बिखेर रही है।
ReplyDeleteबसंत ऋतु पर एक सुन्दर रचना ....
ReplyDeleteसमयानुकूल रचना है.
ReplyDeleteसुंदर। अति सुंदर!!
ReplyDeleteसुंदर बसंत गीत ,बधाई
ReplyDeleteThanks, very-very thanks to all participants for your kind visit and creative comments.
ReplyDeleteदेख सखी! मै सच कहती हूँ,
ReplyDeleteमधुमास का ऋतु आ गया है।
सचमुच, मधुमास आ गया है।
वसंत का जीवंत चित्रण किया है आपने।
सुंदर रचना, बधाई।
पीली सरसों झूम रही है.
ReplyDeleteअरहर अलसी चना मटर
सब खोले बाहें लिपट रही है.
शब्दों में भी पीली सरसों खिल रही है ... रचना पढ़ कर ऐसा लगता है जैसे मधुमास अपने पास ही उतर आया हो ... लाजवाब .
hariyali ke sath holi ki yaad satane legi....bahut sundar madhumas.
ReplyDeleteमधुमास की बहुत सुन्दर वासंती रचना..आभार
ReplyDeleteThanks to all respected participants for visit and more valuable comments.
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