Sunday, February 6, 2011

मृत्यु क्या है ?

जन्म से मृत्यु तक का
समय है - जीवन यात्रा.
परन्तु मृत्यु तक सीमित,
नहीं है - यह जीवन.
मृत्य है - जीवन का
'विश्राम - स्थल'.
जहां कुछ क्षण रुक कर
भूत को टटोलने
और
भविष्यत् के गंतव्य को ,

कृत कर्म के मंतव्य को
पुनर्जन्म के माध्यम से
निर्दिष्ट लक्ष्य संधान का,
एक पुनीत द्वार है यह.
'मृत्यु' -
कोई विनाश नहीं भाई!
एक सृजन है......
'मृत्यु'  अवकाश नहीं,
ढेर सारा दायित्व है....
'मृत्यु' -
नवजीवन प्राप्ति का
द्वार है..
'मृत्यु' -
अमरत्व के लिए अवसर है.

'मृत्यु' -
विलाप का नहीं,

समीक्षा का विन्दु है
जिसके आगे अमरत्व का
लहराता अलौकिक सिन्धु है.
निर्दिष्ट लक्ष्य का
स्वागत द्वार है यह और
पारलौकिक जीवन का
प्रारंभ विन्दु है जो नवीन 
संभावनाओं कोमुट्ठी में
बाँध लेने की जिजीविषा
 नया बल  नयी ऊर्जा का
सतत - सहर्ष प्रदाता है,
हाँ, मृत्यु
डर और भय का नहीं

चिंतन- मनन - मंथन 
और आत्मलोचन का
परम - पावन विंदु है.
मृत्यु में सौन्दर्य है कितना?
ब्रुनो और सुकरात से पूछो.
मृत्यु में ऊर्जा है कितनी
भगत और आजाद से पूछो.
कैसे जोश जगती है यह
गुरु 'अर्जुन 'और 'तेगा' से पूछो.
मृत्युकी सार्थकता है क्या
ईसा - गांधी - ईमाम से पूछो.
मृत्यु की इस सौन्दर्य पे भाई
लाखों जीवन कुर्बान है भाई.



8 comments:

  1. बेहद उम्दा प्रस्तुति……।इसी पर अभी कुछ दिन पहले इसी पर मैने भी लिखा था देखियेगा इस लिंक पर या मेरे ब्लोग ज़िन्दगी पर ………ऐसा लगा जैसे उसके आगे आपने पूरा कर दिया सफ़र मौत का।
    http://vandana-zindagi.blogspot.com/2011/01/blog-post_30.html
    "मौत! तुम्हारा स्वागत है"
    http://vandana-zindagi.blogspot.com

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  2. सही कहा आपने। यह तो एक पड़ाव है, अगली यात्रा पर आगे बढने से पहले का।

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  3. वंदना जी, मनोज जी !!
    नमस्कार और सार्थक समालोचना, टिपण्णी के लिए बहुत-बहुत आभार . ..करीब दस दिनों से हमारा नेट कार्य नहीं कर रहा था. सबसे क्त गया था....लगता था जैसे जीवन ही अधूरा हो गया है..... और इस बीच कई अद्भुत पोस्ट आई और मै देख भी नहीं पाया. मनोज जी की कृति शास्त्री जी के सन्दर्भ में तो कहीं न कहीं पढ़ लेता था, उनकी एक टिप्पणीहमारे मेल में मिल जाती थी. लेकिन वंदना जी का काव्य नहीं पढ़ पाया. आज जब लिंक मिला तो अभी-अभी उसे देखा. बहुत ही सार गर्भित और तःथ्य्पूर्ण विवेचना की है आपने. आपने विषय साम्यता और अगली कड़ी की बात की है. मैं इस सम्बन्ध में इतना ही कहना चाहूँगा कि सत्य जब भी प्रस्फुटित होता है वह अपनी पर्याप्त ऊर्जा और शक्ति के साथ होता है ...जो जितना संवेदी और मुखर होता ..उतना ही बटोर पता है. अनुभूति के संग्रह भंडार से ही दान की झोली बड़ी और छोटी होती है..... कुछ ऐसे भी हैं जो गुप्त दान में विश्वास रखते हैं और उनके आगे हम निश्चित रूप से बौने से हैं. परन्तु संवेदनाओं को छिपाना भी तो पाप है,....... यदि वे सर्जनात्मक है... . इसलिए मन मष्तिष्क में कुलबुलाहट होती है और लेखनी फिर अपना कार्य करने लगती है, रुक नहीं पाती. हाँ इतना जरूर है कि यदि आपकी रचना पढ़ी होती तो कुछ बदलाव आया होता....कुछ प्रतिक्रिया होती. फिर भी आपकी श्रेष्ठ रचना के लिए ढेर सारी बधाइयां......

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  4. मृत्यु का अलग दृष्टिकोण, और सत्य भी....
    बहुत सार्थक.... मृत्य अंत नहीं...
    गीता का सार भी और वेद की वाणी भी....

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  5. Rajesh ji!
    नमस्कार!
    ब्लॉग पर पधारने और सार्थक टिप्पणी के लिए आभार.

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  6. मृत्यु का सही दृष्टिकोण है यह,परन्तु लोग समझ कर सचेत हों तो लाभ उठा सकते हैं.

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  7. 'मृत्यु' -
    कोई विनाश नहीं भाई!
    एक सृजन है......
    'मृत्यु' अवकाश नहीं,
    ढेर सारा दायित्व है....
    'मृत्यु' -
    नवजीवन प्राप्ति का द्वार है..
    'मृत्यु' -
    अमरत्व के लिए अवसर है....

    बहुत सारगर्भित प्रस्तुति..म्रत्यु एक ऐसा सत्य है जिससे हम पीठ नहीं मोड सकते, फिर क्यों न खुशी खुशी इस का स्वागत किया जाये..हम जो कुछ भी जीवन मे हमारे पास है उसी को सत्य मान कर अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य से भटक जाते हैं..सम्पूर्ण जीवन दर्शन को कविता में सुगमता से बाँध देने के लिए हार्दिक बधाई. आभार

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  8. Mathur Sahab, Sharmaji,
    नमस्कार!1
    ब्लॉग पर पधारने, सार्थक समालोचना, टिपण्णी के लिए बहुत-बहुत आभार. . .

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