Tuesday, February 8, 2011

पूजा सरस्वती की: महिमा धन का




बच्चों की परीक्षा की तैयारी
जगह-जगह अब दीख रही है.
कोचिंग जाकर सुबह सबेरे 
न जाने क्या सीख रही है?
कुछ करने को 'सरस्वती पूजा',
सड़कों पर उतावले दीख रहें है.
सरस्वती हैं 'स्वर की देवी',
विद्या - वाणी - ज्ञान आधार.
कभी विद्या की पूजा होती थी,
धन की पूजा होती है आज.
सरस्वती के मंडप में भी
देखी धन की महिमा आज.
धनिक वर्ग है कला विहीन क्यों?
सुविधाभोगी संवेदनाहीन क्यों?
कैसी दुविधा क्या माया है?
आज समझ में आया है कुछ,
क्यों कहीं धूप कहीं छाया है?
छोड़ 'हंस' की विवेकी प्रकृति,
'उल्लू आदर्श' जो अपनाया है.

6 comments:

  1. अब तो हर जगह उल्लू आदर्श ही चल रहा है सुन्दर रचना। शुभकामनायें।

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  2. बसंत-पंचमी की मंगलकामनाएं.
    यथार्थ वर्णन के लिए धन्यवाद.

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  3. bar de beena wadini,bar de.phir bhi bina budhi ke dhan nahi tikega.jaise Mr.Raja.aap ko basant-panchami ki subh kamanayen.

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  4. छोड़ 'हंस' की विवेकी प्रकृति,
    'उल्लू आदर्श' जो अपनाया है.

    बहुत सार्थक प्रस्तुति..कटु सत्य का प्रभावपूर्ण चित्रण. आभार

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  5. आज समझ में आया है कुछ,
    क्यों कहीं धूप कहीं छाया है?
    छोड़ 'हंस' की विवेकी प्रकृति,
    'उल्लू आदर्श' जो अपनाया है.

    प्रणाम,
    इन पंक्तियों ने तो सब कुछ कह दिया अब मुझे तो कुछ कहने की जरुरत ही नहीं...
    बसंत पंचमी की बधाई स्विकार करे ...

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  6. Thanks to all respective participants and criticizers for their valuable comments.

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